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दुईया, लेम्ब्रे सड़क के निर्माण के लिए वन विभाग नहीं दे रहा एनओसी, ग्रामीण नाराज, Forest department is not giving NOC for the construction of Duiya, Lambre road, villagers angry.


गुवा। सारंडा जंगल क्षेत्र के गंगदा पंचायत अन्तर्गत दुईया से लेम्ब्रे गांव तक लगभग 4.5 किलोमीटर लम्बी सड़क का निर्माण हेतु वन विभाग द्वारा कार्यकारी एजेंसी को एनओसी नहीं दिये जाने से दोनों गांवों के मुंडा क्रमशः जानुम सिंह चेरोवा, लेबेया देवगम, मुखिया राजू सांडिल समेत ग्रामीण काफी नाराज हैं। उक्त सड़क का निर्माण ग्रामीणों की लम्बी लड़ाई के बाद सीएसआर योजना से टाटा स्टील कंपनी प्रबंधन ने बनाने हेतु सहमति जताई है। टाटा स्टील दुईया गांव के समीप नाला पर एक पुल तथा कुछ दूर पीसीसी सड़क का निर्माण भी करा चुकी है। ग्रामीणों को लग रहा है कि अगर यह सड़क अभी नहीं बना तो फिर कभी बन नहीं पायेगा। 


जिससे दोनों गांवों खासकर लेम्ब्रे गांव के ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पडे़गा। गंगदा पंचायत के मुखिया राजू सांडिल ने कहा कि कोयना नदी के दूसरी छोर पर बसा लेम्ब्रे गांव में जाने का कोई रास्ता नहीं है। वर्षा होने पर यह गांव टापू में तब्दिल हो जाता है। बीते वर्ष सांसद गीता कोड़ा भी नदी पार करके पहली बार इस गांव में पहुंची थी एवं नदी पर पूल व गांव तक पहुंच पथ बनाने की बात कही थी। विभागीय अधिकारी जायजा भी लिये थे लेकिन कार्य अब तक प्रारम्भ नहीं हो सका। इससे अलग हटकर हम ग्रामीणों ने दुईया गांव होते लेम्ब्रे तक वैकल्पिक सड़क का निर्माण हेतु टाटा स्टील के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। 


इसके बाद कंपनी प्रबंधन गुणवता के साथ सड़क व पुल निर्माण कार्य प्रारम्भ किया, लेकिन अब लगभग साढे़ चार किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण हेतु वह एनओसी नहीं दे रही है। राजू सांडिल ने कहा की साढे़ चार किलोमीटर लंबी सड़क में लगभग 700 मीटर सड़क हीं वन भूमि के जमीन पर आयेगा। बाकी सड़क रैयत भूमि पर है। हम सिर्फ रैयत भूमि की सड़क हेतु एनओसी देने की मांग कर रहे हैं। वन विभाग कहती है कि एसडीओ या अंचलाधिकारी से जांच कराकर इस दिशा में एनओसी देने के बाबत सोंचा जायेगा, लेकिन यहाँ अंचलाधिकारी हैं नहीं, कब आयेंगे तथा कब तक जांच होगा पता नहीं। 


उन्होंने कहा कि हम ग्रामीण सारंडा जंगल को वन विभाग के साथ मिलकर बचाने का कार्य कर रहे हैं। पिछले दिनों हीं वन विभाग गुवा की टीम के साथ मिलकर जंगल काट वन भूमि पर कब्जा कर रहे लोगों को भगाया था। जब हम सारंडा जंगल व वन विभाग के प्रति इतने सहयोगी हैं तो क्या वन विभाग पहले से मौजूद कच्ची ग्रामीण व फौरेस्ट सड़क का पक्कीकरण हेतु सहमति नहीं दे सकती है। दूसरी तरफ दोनों गांवों के मुंडा ने कहा कि अगर हमारे गांवों में जाने का सड़क व सरकार की अन्य विकास योजनायें पहुंच हीं नहीं सकती है तो फिर हम लोकसभा व विधान सभा में वोट देकर अपना जनप्रतिनिधि हीं क्यों चुनेंगे। वन विभाग व अन्य एजेंसी को मदद क्यों करेंगे। टाटा स्टील सरकारी एजेंसी के ठेकेदारों से बेहतर सड़क निर्माण कराती, जिसे कराने से रोका जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।

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