Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal. भारत के उत्‍थान की प्रेरणा है अयोध्या का श्री राम मंदिर , Shri Ram Temple of Ayodhya is the inspiration for the rise of India.


Upgrade Jharkhand News.  अद्भुत, अकल्पनीय और अविस्मरणीय वह अभिजीत मुहूर्त, जब प्राण-प्रतिष्‍ठा कर रामलला के नेत्रों से पट्टि‍का हटाई गई तो पूरे विश्व के सनातन संस्कृति के उपासकों के नेत्रों में श्रद्धा, आस्था, आनंद और प्रतीक्षा के आँसू थे। पौष शुक्ल द्वादशी, 22 जनवरी 2024 केवल अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव का दिवस नहीं, बल्कि संपूर्ण हिंदू समाज की दृष्टि और विचारों के परिवर्तन की उपलब्धि का दिन है। पीढ़ियों की तपस्या, त्याग, बलिदान और प्रतीक्षा के बाद अयोध्या ने इस शुभ घड़ी का स्वागत किया था।



भगवान श्रीराम की प्राण-प्रतिष्‍ठा से आनंदित, उत्‍साहित यह वही अयोध्या है जिसके परिचय में अथर्व वेद में उल्लेख आता है कि -  अष्ट चक्रा नव द्वारा देवाना पू: अयोध्या 

तस्या हिरण्यमय: कोश स्वर्गो ज्योतिषावृत:।।

अयोध्या, जिसका अर्थ ही है जो अजेय है, अपराजित है। सहस्त्रों वर्षो तक अयोध्या अपने स्वर्णिम इतिहास के लिए जानी जाती रही। वही अयोध्‍या जहाँ हिन्‍दू समाज के आराध्य श्रीराम जी का जन्म सकल लोक के मंगल हेतु हुआ। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी अयोध्‍या का वर्णन कुछ इस प्रकार करते हैं- 

विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित प्रभु माया गुन गो पार।। 

हिन्दू समाज की आस्था के केंद्र, समरसता, नैतिकता व कर्तव्यपालन का बोध कराने वाले श्रीराममंदिर का कालांतर में विध्वंस कर मुगल आक्रांताओं द्वारा गुलामी के प्रतीक के रूप में बाबरी मस्जिद बना दी गई। इसके बाद 1528 से ही आरंभ हुए श्रीराममंदिर आंदोलन का 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय पर विराम हुआ। 5 अगस्त 2020 को भूमिपूजन के साथ करोड़ों लोगों की भावनाओं ने विविध प्रकार से उत्सव की अभिव्‍यक्ति की। यह एक ऐसा आंदोलन रहा जिसमें साधु-संतों ने युद्ध भी किया और वे आध्यात्मिक जागरण के केंद्र भी बने। बैरागी अभिराम दास (योद्धा साधु), राममंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष महंत रामचन्द्र परमहंस, महंत अवैद्यनाथ व देवरहा बाबा ने संपूर्ण आंदोलन को एक दिशा प्रदान की। कोठारी बन्धुओं के बलिदान को हिन्दू समाज भला कैसे विस्मृत कर सकता है? विष्णु डालमिया, अशोक सिंहल वे तेजपुंज हैं, जिन्होंने सनातन ऊर्जा को संग्रहित कर इस पवित्र कार्य से जोड़ा।



मंदिर आंदोलन के मूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका से सभी भलीभांति परिचित ही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने पूरे आंदोलन में जनजागरण करते हुए आस्था के उच्चतम प्रतिमानों को विश्वव्यापी स्वरूप दिया। विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सहित विचार परिवार के सभी संगठनों ने अपनी पूर्ण सामर्थ्य के साथ तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस की मंशा के अनुरूप धैर्यपूर्वक योजनाबद्ध आंदोलन किए। भारतीय जनता पार्टी द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में देशव्‍यापी रथयात्रा ने पूरे भारत में वातावरण का निर्माण किया तो असंख्य कारसेवकों के बलिदान ने राम राष्ट्र के इस यज्ञ में समिधा का कार्य किया।



मंदिर आंदोलन के इतिहास में अनेक बलिदानियों के रक्त व उनके परिजनों के त्याग का बिंदु समाहित है। राममंदिर के प्रति समाज की आस्था इतनी प्रबल रही है कि जब श्रमदान आवश्यक था तब श्रमदान किया। वहीं  राष्ट्रमंदिर को भव्यता और दिव्यता देने के लिए निधि समर्पण अभियान में जाति, वर्ग, दल, समूह के सभी बंधनों को ध्वस्त करते हुए जिससे जो बन पड़ा उसने भगवान श्रीराम के चरणों में समर्पण किया।



भारतीय पंचांग के अनुसार पौष शुक्ल द्वादशी के  दिन जो पिछले वर्ष 22 जनवरी 2024 को पड़ी थी, भगवान के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी। संपूर्ण भारत की आस्था के केंद्र श्रीराम मन्दिर के माध्यम से आध्यात्मिक चेतना को बल मिला और देशवासियों में स्वाभिमान का जागरण हुआ। वहीं जो लोग मन्दिर निर्माण का विरोध कर रहे थे उनके सारे अवरोधों का प्रति उत्तर भी इस एक वर्ष में मिला। प्राण-प्रतिष्ठा से प्रथम वर्षगांठ तक असंख्य दर्शनार्थियों ने न केवल रामलला के दर्शन किए बल्कि अयोध्या सहित आस-पास के क्षेत्र के आर्थिक तंत्र को मजबूत करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है।



नागर शैली में निर्मित अलौकिक सुंदरता से परिपूर्ण श्रीराम मंदिर की लंबाई पूर्व से पश्चिम 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट व ऊंचाई 161 फीट है। भव्य तीन मंजिला मंदिर में 392 स्तंभ और 44 द्वार हैं। भूतल में प्रभु श्रीराम का मोहक बाल रूप तो प्रथम तल में श्रीराम दरबार का गर्भगृह है। नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना व कीर्तन मंडप है। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी विराजित हैं। मंदिर के समीप ही पौराणिक काल का सीताकूप रहेगा। 732 मीटर लंबे व 14 मीटर चौड़े चहुंमुखी आयताकार परकोटे के चार कोनों पर भगवान सूर्य, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव का मंदिर बनेगा। मंदिर परिसर में ही महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व देवी अहिल्या के मंदिर प्रस्तावित हैं। 



यह मात्र एक मंदिर नहीं बल्कि भारत की संस्कृति और अस्मिता का प्रतीक है। एक स्वाभिमानी राष्ट्र अपने ऐसे ही प्रतीकों से ऊर्जा प्राप्त करता है। राम मंदिर भारत की चेतना का पर्याय है और इसका भी कि राम जन-जन की स्मृति में कितने गहरे रचे-बसे हैं। यह आधुनिक विश्‍व के इतिहास में पहली बार है, जब किसी समाज ने अपने प्रेरणा पुरुष के जन्मस्थान एवं उनके उपासना स्थल को अतिक्रमण और अवैध कब्जे से न्यायपूर्वक छुड़ाने में सफलता प्राप्त की। इसी कारण राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने देश-विदेश में कोने-कोने में बसे भारतीयों को भाव विभोर कर दिया था।



प्राण-प्रतिष्ठा भारत ही नहीं, विश्‍व इतिहास में सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय महत्व का सबसे बड़ा आयोजन था। इस आयोजन को लेकर उमड़ा भावनाओं का ज्वार ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर दे रहा था कि राम मंदिर का निर्माण क्यों आवश्यक था और हिंदू समाज उसके लिए इतनी व्यग्रता से क्यों प्रतीक्षा कर रहा था? अच्छा होता कि यह प्रतीक्षा स्वतंत्रता के बाद ही पूरी हो जाती, किंतु संकीर्ण राजनीतिक कारणों और सेक्युलरिज्म की विजातीय-विकृत अवधारणा के चलते ऐसा नहीं हो सका। यह विडंबना ही रही कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की हिंदू समाज की सदियों पुरानी स्वाभाविक अभिलाषा की अनदेखी की गई। 



जिस अयोध्या को अवनी की अमरावती और धरती का बैकुंठ कहा गया, वह सदियों तक अभिशप्त थी, उपेक्षित रही, सुनियोजित तिरस्कार झेलती रही। अपनी ही भूमि पर सनातन आस्था पद दलित होती रही, किंतु राम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है और भारतीय समाज ने संयम बनाए रखा। समय के साथ समाज का संकल्प भी दृढ़ होता गया और आज समस्त सृष्टि अयोध्या के वैभव को निहार रही है। यह धर्म नगरी विश्व की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है।



संकल्प और साधना की सिद्धि के लिए, हमारी प्रतीक्षा की इस समाप्ति के लिए और संकल्प की पूर्णता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों का भी अभिनंदन है। एक दूरदृष्टि लेकर भारत के न भूतो न भविष्‍यति के स्वर्णिम अवसर को साकार करने में उनकी महती भूमिका रही। श्री राम जन्मभूमि मंदिर की स्थापना भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आध्यात्मिक अनुष्ठान है। यह राष्ट्र मंदिर है। अब भारत को भव्य बनाने के संकल्प को पूर्ण करने की बारी है और भगवान श्रीराम का मंदिर इसकी प्रबल प्रेरणा है। ऐसा होना निश्चित ही है क्योंकि इस प्राण प्रतिष्ठा से समस्त दिशाओं से शुभ संकेत मिलना आरंभ हो ही चुका है। गोस्वामी तुलसीदास जी की इन पंक्तियों के साथ-

"मोरे जिय भरोस दृढ़ सोई, मिलहि राम सगुन सुभ होई.’’ शुभमस्तु। हितानंद शर्मा



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template