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Bhopal. देवस्थानों में हादसों का जिम्मेदार कौन , Who is responsible for accidents in temples


Upgrade Jharkhand News.  देश के प्रसिद्ध मंदिरों, मेलों और धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की व्यवस्था सही नहीं है जिस कारण हर साल सैकड़ों श्रद्धालु हादसों में काल कवलित हो जाते हैं। हर  हादसे के बाद जांच कमेटी गठित होती है लाख दो लाख की सहायता राशि आश्रितों को बांटकर सरकार अपना फर्ज पूरा मान लेती है और शुरू हो जाता है नए हादसे का इंतजार।  इन हादसों की एक बड़ी वजह हमारे देवस्थानों पर भीड़ प्रबंधन के लिए नयी तकनीक व कारगर प्रबंधन का नितांत अभाव है। ताजा हादसा विश्व प्रसिद्ध आंध्र प्रदेश के देवस्थानम तिरुपति मंदिर में हुआ है। यहां 8 जनवरी बुधवार को बैकुंठ द्वार दर्शन के लिए टिकट केंद्र के पास भगदड़ मचने से आठ लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 40 लोग घायल हो गए हैं। घायलों को पास के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि दर्शन के लिए टोकन बांटे जाने के दौरान भगदड़ मच गई। बैकुंठ द्वार सर्वदर्शनम 10 दिनों तक चलने वाले विशेष दर्शन हैं, जो शुक्रवार से शुरू होने जा रहा था। आपको बता दें कि तिरुपति मंदिर में हुआ ये हादसा देश में हुआ इकलौता ऐसा हादसा नहीं है। बीते दो दशक में इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 



  तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम्स (टीटीडी) के अध्यक्ष बीआर नायडू ने कहा कि तिरुपति मंदिर में हुई भगदड़ के पीछे अधिकारियों की लापरवाही थी। उनका कहना था कि टीटीडी ने संक्रांति के मौके पर देशभर से बैकुंठ दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बड़ी व्यवस्था की है लेकिन भक्तों को टोकन जारी करने वाले केंद्रों में प्रवेश की अनुमति देते समय पुलिस और अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी थी। बुधवार को घंटों से इंतजार कर रहे श्रद्धालु पट खुलते ही भाग खड़े हुए और भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में आठ लोगों की मौत हो गई है। वहीं, 48 लोग घायल हो गए हैं, जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त एकादशी पर दर्शन के लिए पहुंचे थे। इसी दौरान दर्शन करने के लिए भक्त टोकन ले रहे थे। देखते ही देखते  भीड़ बेकाबू हो गई और फिर भगदड़ मच गई। भगदड़ में बहुत सारे लोग नीचे गिरकर दब गए और फिर कभी खड़े नहीं हो पाए। घटना के बाद मौके पर पहुंचा भारी पुलिस बल आनन-फानन में घायल लोगों और मृतकों के लेकर अस्पताल पहुंचा, जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद 8 लोगों को मृत घोषित कर दिया। 



अभी उत्तर प्रदेश के हाथरस में आयोजित सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 50 से अधिक लोगों की मौत के जख्म भरे नहीं है। अव्यवस्था के चलते इस हादसे में भी निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी। भारत में मंदिरों एवं अन्य धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ होने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत की यह पहली घटना नहीं है। महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में 2005 के दौरान हुई भगदड़ में 340 श्रद्धालुओं की मौत और 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर में हुई भगदड़ में कम से कम 250 लोगों की मौत ऐसी ही कुछ बड़ी घटनाएं हैं। हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भी 2008 में ही धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ में 162 लोगों की जान चली गई थी।


हाल के वर्षों में देश में मंदिरों और धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ की कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं

31 मार्च 2023 : इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन बावड़ी के ऊपर बनी स्लैब ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई।

एक जनवरी 2022 : जम्मू-कश्मीर स्थित प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए।

14 जुलाई 2015 : आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी जिले में ‘पुष्करम’ उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ से 27 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई तथा 20 अन्य घायल हो गए।

तीन अक्टूबर 2014 : दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोगों की मौत हो गई और 26 अन्य घायल हो गए।

13 अक्टूबर 2013 : मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। भगदड़ की शुरुआत नदी के पुल टूटने की अफवाह से हुई जिसे श्रद्वालु पार कर रहे थे।

19 नवंबर 2012 : पटना में गंगा नदी के तट पर अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से मची भगदड़ में लगभग 20 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।

आठ नवंबर 2011 : हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर की पैड़ी घाट पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई।

14 जनवरी 2011 : केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में एक जीप के सबरीमाला मंदिर के दर्शन कर लौट रहे तीर्थयात्रियों से टकरा जाने के कारण मची भगदड़ में कम से कम 104 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 40 से अधिक घायल हो गए।

चार मार्च 2010 : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से लगभग 63 लोगों की मौत हो गई। लोग स्वयंभू धर्मगुरु द्वारा दान किए जा रहे कपड़े और भोजन लेने पहुंचे थे।

30 सितंबर 2008 :राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह के कारण मची भगदड़ में लगभग 250 श्रद्धालु मारे गए और 60 से अधिक घायल हो गए।

तीन अगस्त 2008 :हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में चट्टान खिसकने की अफवाह के कारण मची भगदड़ में 162 लोगों की मौत हो गई, 47 घायल हो गए।

 25 जनवरी 2005 : महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचलकर मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। यह दुर्घटना तब हुई जब कुछ लोग फिसलन भरी सीढ़ियों पर गिर गए।

27 अगस्त 2003 : महाराष्ट्र के नासिक जिले में सिंहस्थ कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ में 39 लोग मारे गए और लगभग 140 घायल हो गए थे। 



दरअसल हमारे देश में तमाम उत्सवों, स्नान पर्व, मंदिर दर्शन, कथाओं यहां तक कि रामलीला मेलों और गणेश प्रतिमा विसर्जन यात्राओं के दौरान भी सैकड़ों युवा श्रद्धालु काल कवलित हो जाते हैं। बावजूद इसके न तो आयोजक न मंदिर कमेटी न ही प्रशासन और सरकारें कोई सबक लेती है और न ही श्रद्धालुओं में धार्मिक आयोजनों के दौरान संयम, सदाचार, अनुशासित आचरण देखने को मिलता है। यही कारण है कि बिना सोचे समझे अफवाहों को सही मानकर श्रद्धालु असंयमित आचरण करते हैं और स्वयं व दूसरों के लिए काल बन जाते है। जरूरत इस बात की है कि किसी भी धार्मिक कार्यक्रम यात्रा में शामिल होने वाले लोगों में अनुशासन,संयम और विवेक की भावना विकसित की जावे ।जीवन अनमोल है, अपरिहार्य है, सारे तीर्थ दर्शन की उपयोगिता जीवन के अस्तित्व बने रहने पर है। जीवन की कीमत पर देवदर्शन करना या आपाधापी कर दूसरों के जीवन को खतरे में डालना आस्था या श्रद्धा का पर्याय नहीं हो सकता है। वहीं सरकार और प्रशासन समुचित व्यवस्था बनाए ताकि भविष्य में कोई बैकुंठ द्वार के दर्शन का अभिलाषी बिना टोकन लिए ही सीधा बैकुंठ पहुंचने से बचाया जा सके। आने वाले कुंभ मेले के मद्देनज़र भी सरकार को व्यापक जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। मनोज कुमार अग्रवाल



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