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Bhopal. पाकिस्तान में भगत सिंह को आतंकवादी बताने की कोशिश, Attempt to portray Bhagat Singh as terrorist in Pakistan


Upgrade Jharkhand News. जिस महान शहीद भगत सिंह को सारा हिन्दुस्तान शहीद ए आजम भगत सिंह मानता है,वहीं इस वीर पुत्र की जन्मभूमि पाकिस्तान में कुछ कट्टरपंथी लोगों ने उनका विरोध करते हुए उन्हें आतंकवादी बताना शुरू कर दिया है।पिछले दिनों पाकिस्तानी पंजाब की सरकार ने शामदान चौक का नाम शहीद भगत सिंह को समर्पित करने की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया है । पाकिस्तानी कट्टरपंथियों का कहना है कि भगत सिंह कोई क्रांतिकारी नहीं था बल्कि वह अपराधी और आतंकवादी था। 23 मार्च 1931 को सम्राट शहीद भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी वह जगह आज पाकिस्तान में शामदान चौक से प्रसिद्ध है। पाकिस्तान के भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने पाकिस्तान के ही हाई कोर्ट में एक केस दायर किया था कि उस चौक पर भगत सिंह की मूर्ति लगाई जाए लेकिन पूर्व नौसेना अधिकारी तारीम मजीद की टिप्पणी के पश्चात इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया है,मजीद ने कोर्ट में यह कहा कि भगत सिंह ने एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की थी, इसलिए उनके साथ दो साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई । इस कमेटी ने कहा है कि भगत सिंह मुस्लिम नेताओं के प्रति मजहबी नेताओं से प्रभावित थे और उन्होंने कहा कि इस्लामी विचारधारा और पाकिस्तानी संस्कृति के विरुद्ध काम करने वाले भगत सिंह फाउंडेशन के नेताओं पर लगाम लगानी चाहिए। पाकिस्तानी कट्टरपंथियों का कहना है कि इस्लाम में नास्तिक लोगों का कोई स्थान नहीं है ,इस्लाम में मानव मूर्तियां स्थापित करने का भी कोई प्रावधान नहीं है।              



पाकिस्तान में 23 मार्च 1931 को लाहौर की जिस सेंट्रल जेल में इन तीन वीर युवाओं को फांसी दी गई थी,वह गिराई जा चुकी है।  आजादी के समय 1947 में उस जेल के बाहर वाले चौराहे का नाम भगत सिंह चौक था, जहां पर हर वर्ष शहीदों को फूल माला चढ़ाकर लोग श्रद्धांजलि दिया करते थे। 1964 में जेल गिरा देने के पश्चात उस जगह का नाम शादमान चौक रख दिया गया ,लेकिन शहीदों की याद पहले की भांति मनाई जाती रही। 2012 में लाहौर नगर पालिका ने शहीदों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए चौराहे का नाम भगत सिंह चौक रखने का प्रस्ताव रखा ,लेकिन कुछ कट्टर पंथियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया और लाहौर की हाई कोर्ट में केस दर्ज कर दिया। भगत सिंह गैर मुस्लिम थे इसलिए कट्टरपंथी पाकिस्तान में उनकी यादगार नहीं बनने देना चाहते हैं।  फिलहाल शादमान चौक को भगत सिंह चौक बनाने और भगत सिंह की मूर्ति लगाने की योजना को रोक दिया गया है। इस सबके बाद भी पाकिस्तान के कई उदारवादी लोगों का कहना था कि भगत सिंह हमीं में से एक थे। वे हमारी धरती पाकिस्तान के सपूत थे ,उनके व्यक्तित्व को धर्म और जाति से जोड़ना ठीक नहीं है, ऐसा करना उस महान उद्देश्य का अपमान है ,जिसके लिए उन्होंने अपने प्राण न्योछावर किए थे। जब उन्होंने बलिदान दिया उस समय पाकिस्तान का कोई मुद्दा ही नहीं था। उनके दिल में हिंदू मुसलमान का कोई भेदभाव नहीं था। वह अंग्रेजों के पंजे से पूरे हिंदुस्तान को आजाद करवाने के लिए लड़े थे। भगत सिंह असल में  क्रांतिकारी थे। वह ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजी शासन की चूले हिला कर रख दी थी।



भगत सिंह शुरू से ही नास्तिक थे, उन्होंने अपने लेखों में भी सिद्ध करने की कोशिश की कि वह क्यों नास्तिक है।      विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन  सिंह ने भी  भगत सिंह के खिलाफ दिए गए आपत्तिजनक बयान पर आपत्ति दर्ज की है। पाकिस्तान की पंजाब सरकार के महाअधिवक्ता असगर  लेबारी ने लाहौर हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान भगत सिंह को आतंकी बताया था। फिरोजपुर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार चिंगारी के मालिक बिहारी लाल दीवाना जो भगत सिंह के हम उम्र थे का कहना था कि लाहौर और सिंध में जनता में आजादी की मुहिम को तेज चलाने के लिए हिन्दू मुसलमान दोनों कौमों के नौजवान ड्रामे(नुक्कड़ नाटक) खेला करते थे, वे वहां अंग्रेजों के खिलाफ बड़े जोशीले नारे लगते थे।अंग्रेज इन्हें तरह तरह से प्रताड़ित भी करते थे लेकिन फिर भी आजादी की यह साझी लड़ाई थी। जिसे हिन्दू मुसलमान दोनों मिलकर लड़ रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना का उदाहरण देते हुए कहा कि तब इतना भाईचारा था कि  जिन्ना ने भी संसद में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिए जाने का जमकर विरोध किया था।



पिछले अनेक वर्षों से पाकिस्तान के उस चौराहे पर भगत सिंह की जयंती मनायी जाती थी जहां उन्हें फांसी दी गई थी लेकिन अब यहां इस पर विवाद होने लगे हैं। हमें याद है अशफाक उल्ला की  जो गले में कुरान लटका कर इन पंक्तियों को गाते हुए सूली पर चढ़ गए थे कि- 

 कुछ आरजू नहीं है_है आरजू तो यह

रख दे कोई जरा सी खाक_ए _वतन में 

      यह पंक्तियां देशभक्ति की भावनाओं का इजहार करती है धार्मिक भावनाओं की नहीं । इसलिए पाकिस्तान के कट्टरपंथी विचारों वाले लोग भगत सिंह और उनके साथियों को शहीद नहीं मानते ,उनकी दलील है कि उन्होंने अंग्रेजी अफसर सांडर्स को गोली मार कर हलाल किया है। इसलिए वह आतंकवादी थे ,जबकि पाकिस्तान में बसे उदारवादी लोगों का कहना है कि वह आतंकवादी नहीं थे बल्कि वह क्रांतिकारी थे ,उन्होंने अपना जीवन  स्वतंत्रता के लिए न्यौछावर कर दिया। आजादी प्राप्त करने हेतु न केवल हिंदुओं ने बलिदान दिए बल्कि मुसलमानों की कुर्बानियों को भी भुलाया नहीं जा सकता। उस समय के फिरोजपुर के स्वतंत्रता सेनानी मोहम्मद कुर्बान अहमद ने गुल्ली डंडा समाचार पत्र में लिखा था कि "हम मुस्लिम नौजवानों को कौम पर शहीद होने का जज्बा भगत सिंह और उनके साथियों से सीखना चाहिए। हम भगत सिंह तो नहीं बन सकते परंतु उनके रास्ते पर चलकर देश को अंग्रेजों से आजाद अवश्य करा सकेंगे। धन्य है ऐसे देशभक्त जो फिरोजपुर से साइकिल पर जाकर कसूर सब जेल में भारतीय कैदियों को खाना मुहैया किया करता था।"



आज पाकिस्तान में कट्टर पंथी अपने आप को इस्लाम का नंबरदार बनाना चाहते हैं और पिछले इतिहास को भूलना चाहते हैं ,लेकिन कटु सच्चाई यह है कि भगत सिंह और उनके साथी स्वतन्त्रता संग्राम के सच्चे सिपाही थे , जिन्हें कुछ राजनीतिक लोगों ने जाति में बांट दिया है। मोहम्मद अली जिन्ना ने भी भगत सिंह और उनके साथियों को शहीद का दर्जा दिया था जिन्हें आज जिन्ना की विरासत भूल रही है और पाकिस्तान में भगत सिंह का विरोध किया जा रहा है।  सुभाष आनंद



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