Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal. रस, रंग और माधुर्य का पर्व होली, Holi is a festival of colours, joy and merriment


Upgrade Jharkhand News. होली-मंगलोत्सव भारत वर्ष में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध लोकपर्व है। रस, रंग, माधुर्य से सराबोर यह पर्व आंतरिक उल्लास को उभारने वाला एक सांस्कृतिक पर्व है। यह पर्व कृषि कुसुमित संस्कृति के एक प्रतीक के रूप में भी प्राचीन समय से प्रचलित है। इसकी यह सार्वभौम विशेषता ही है, जिसके कारण देश के हर वर्ग, जाति, धर्म और संप्रदाय के लोग इसे बड़े उत्साह एवं आनंद के साथ मनाते हैं। रंगों का यह पर्व प्रकृति से मानव को एकाकार कर तादात्म्य स्थापित कर देता है एवं जीवन को उल्लास के साथ जीने की रीति-नीति का भी शिक्षण देता है।  



बसंत से ही आरंभ हो जाने वाले इस पर्व में जहां एक ओर बासंती रंगों  से रंगी प्रकृति सुन्दर छटा बिखेरती है, वहीं दूसरी ओर गुलाल-अबीर से रंगा मानव समुदाय अपनी आंतरिक पुलकन को भी प्रगट करता है। होलिका पर्व निष्क्रिय जड़ता पर जीवंत एवं सजीव चैतन्यता की स्थापना का पर्व है। वस्तुत: होली बहुत प्राचीन उत्सव है। इसको आरंभिक काल में 'होलाका' कहा जाता था। भारत के पूर्वी भागों में अभी भी यह शब्द प्रचलित हेै।  'होलाका' उन 20 क्रीड़ाओं में से एक है, जो संपूर्ण भारत में कभी प्रचलित थीं। इसके अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा पर लोग श्रंग से एक-दूसरे पर रंगीन जल छोड़ते हैं और सुगंधित चूर्ण बिखेरते हैं। लिंग पुराण इस पर्व को फाल्गुनिका कहकर संबोधित करता है एवं इसे विभूति व ऐश्वर्य प्रदायक पर्व मानता है। डॉ. रामानंद तिवारी हमारी जीवन संस्कृति में लिखते हैं- राग-रंग और उल्लास का यह पर्व अपनी व्यापकता,स्वच्छता और संपन्नता में अनुपम है। अनेक विशेषताओं से युक्त वर्ष का यह अंतिम पर्व जीवन में संस्कृति के पूर्ण समन्वय का द्योतक है। वैदिक यज्ञ और लोकोत्सव का एक अद्भुत समन्वय इससें मिलता है। होली के पर्व पर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचकर वर्ष की रागिनी नये वर्ष की नयी रागिनी को जन्म देती है।



होली का नैसर्गिक संबंध ऋतु परिवर्तन से है। शिशिर और हेमंत कालीन शीत की ठिठुरन के बाद बसंत का आगमन उल्लास लेकर आता है। फाल्गुन मास व बसंत दोनों मिलकर प्रकृति में अपूर्व आंनद व उमंग का रंग घोलते  हैं। कोयल की कूक, खिलते पुष्पों की सुगंध व आम्र मंजरियों की मादकता से भरा बहता पवन तन-मन में उत्साह एवं जीवन के प्रति एक नई दृष्टिï का विकास करता है। प्रकृति के इन रूपों को देखकर मानव मन हर्षित हो उठता है एवं कभी कवि, कभी साहित्यकार,कभी कलाकारों के माध्यम से भावनाएं अभिव्यक्त होने लगती हैं। रत्नावली में कवि का वर्णन है कि होली पर्व के शुभावसर पर उड़ते हुए केशर मिश्रित गुलालों से उषाकाल का भ्रम हो रहा है।



होली और भगवान श्रीकृष्ण का संबंध अटूट  है। इसे साहित्य के प्रत्येक ग्रंथ में वर्णित देखा जा सकता है। गर्ग संहिता, फागुकाव्य, बसंतविलास, पृथ्वीराज रासो (चंदवरदाई कृत), सूरदास एवं परमानंद के काव्यों में मीरा-रसखान के दोहों में सभी जगह होली एवं कृष्ण का सरस, सजीव एवं सुन्दर चित्रांकन मिलता है। फाग विलास और फाग विहार रीतिकालीन नागरीदास कवि की दो रचनाएं होली पर प्रसिद्ध हैं। बिहारी, घनानंद, पद्माकर, केशव, सेनापति आदि सभी रीतिकालीन कवियों ने अपनी लेखनी से होली का रंग भरा है। भवभूति के मालती माधव नाटक  में तो इसी पर्व का बड़ा सुन्दर चित्रण है। होली का त्योहार सामूहिकता  के भाव की वृद्धि करने वाला है तथा संगठन और एकता को सुदृढ़ बनाने आता है। यदि यही उद्देश्य रखकर समता के इस पर्व को मनाया जाए तो आपस की असमतारूपी असुरता को होली में जलाकर नष्ट किया जा सकता है। उमेश कुमार साहू



होली के अनेक उद्देश्य व शिक्षाएं हैं, किंतु यहां इसके इतिहास के साथ-साथ एक पक्ष को ही स्पर्श किया गया है। एक सबसे बड़ी महत्वपूर्ण शिक्षा इस पर्व की यह है कि मनुष्य को दीन-दुर्बल और डरपोक होकर नहीं रहना चाहिए। सर्वदा इस संसार में नृसिंह की तरह निर्भय और वीर का जीवन जीना चाहिए। हमें श्रेष्ठता को, आदर्शों को अपनाना चाहिए और बुराई से लडऩे का साहस अपने अंदर जगाना चाहिए, तभी इस पर्व को मनाने की सार्थकता है।

No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template