Guwa (Sandeep Gupta) । बीती रात बड़ाजामदा ओपी क्षेत्र के मुख्य सड़क मार्ग पर दो मोटरसाइकिलों की आमने-सामने टक्कर में तीन युवक गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसा रात करीब 7 बजे हुआ, जिससे पूरे इलाके में अफरातफरी मच गई। स्थानीय लोगों ने तत्परता दिखाते हुए घायलों को टाटा स्टील के नोवामुण्डी अस्पताल पहुंचाया। घायलों की पहचान नोवामुण्डी निवासी अल्ताफ हुसैन, महफूज आलम और बड़ाजामदा निवासी सुखराम सोरेन के रूप में हुई है। इनमें से अल्ताफ हुसैन की हालत गंभीर बनी हुई है, जिसे प्राथमिक इलाज के बाद जमशेदपुर के टाटा मेन हॉस्पिटल (टीएमएच) रेफर किया गया है। वहीं, अन्य दो घायलों का इलाज नोवामुण्डी अस्पताल में चल रहा है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, दोनों मोटरसाइकिलें तेज रफ्तार में आमने-सामने से टकराईं। अंधेरा और गति इस दुर्घटना के संभावित कारण बताए जा रहे हैं।
घटना की सूचना मिलते ही बड़ाजामदा पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और जांच शुरू कर दी। अभी तक दुर्घटना के ठोस कारणों की पुष्टि नहीं हो पाई है। इस हादसे के बाद एक नई बहस ने जन्म लिया जब स्थानीय लोगों ने नोवामुण्डी अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही और भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए। घायलों को अस्पताल पहुंचाने के बाद जब एक युवक की हालत गंभीर देखी गई और उसे टीएमएच रेफर किया गया, तो लोगों ने अस्पताल से एक मेडिकल तकनीशियन साथ भेजने की मांग की। प्रबंधन द्वारा यह कहकर मना कर दिया गया कि तकनीशियन सिर्फ टाटा स्टील के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध हैं। इसके विरोध में जब लोग अड़े, तो प्रबंधन ने एक सफाईकर्मी को भेजने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय लोगों ने यह कहकर एम्बुलेंस से उतार दिया कि वह ऑक्सीजन लेवल या अन्य तकनीकी देखभाल करने में सक्षम नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह रवैया असंवेदनशील और भेदभावपूर्ण है।
उन्होंने सवाल उठाया कि यदि कोई जनप्रतिनिधि, पुलिसकर्मी या प्रशासनिक अधिकारी घायल हो जाए, तो क्या अस्पताल उसी प्रकार प्रतिक्रिया देगा? उनका कहना है कि चिकित्सा सेवा हर किसी का अधिकार है और किसी भी आपात स्थिति में 'अपना' और 'गैर' का भेद करना अमानवीय है। स्थानीय लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि घायल युवक को लाने के बाद सबसे पहले उसका इलाज शुरू करने के बजाय अस्पताल प्रबंधन कागजी प्रक्रिया को प्राथमिकता देता है। इस देरी से मरीज की जान को खतरा हो सकता है। लोगों ने कहा कि आपातकालीन स्थितियों में इलाज पहले और औपचारिकताएं बाद में होनी चाहिए। टाटा स्टील प्रबंधन की सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) नीति पर भी सवाल उठाए गए। लोगों ने मांग की कि कंपनी को अपने अस्पताल में सभी नागरिकों के लिए समान सेवा उपलब्ध करानी चाहिए, विशेषकर जब लौहांचल क्षेत्र में सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद खराब है। स्थानीय लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन अस्पताल प्रबंधन के पक्ष में खड़ा दिखा। प्रशासन द्वारा यह कहे जाने पर कि "यह अस्पताल टाटा स्टील के कर्मचारियों के लिए है, बाहरी घायलों को सरकारी अस्पताल ले जाना चाहिए", लोगों में और भी रोष उत्पन्न हुआ। वर्तमान स्थिति यह है कि यदि टाटा स्टील या सेल के अस्पतालों को छोड़ दिया जाए, तो लौहांचल क्षेत्र में एक भी ऐसा सरकारी अस्पताल नहीं है जो गंभीर रूप से घायल मरीजों का समुचित इलाज कर सके। न पर्याप्त चिकित्सक हैं, न जरूरी संसाधन। ऐसे में स्थानीय लोगों के पास निजी क्षेत्र के अस्पतालों का ही सहारा बचता है।
गुरुवार को देर रात तक चले विरोध के बाद लोगों ने शुक्रवार (11 अप्रैल) दोपहर दो बजे पुनः नोवामुण्डी अस्पताल के समक्ष विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। उनकी मांग है कि अस्पताल प्रबंधन की जवाबदेही तय की जाए और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए ठोस व्यवस्था की जाए। इस घटना ने केवल एक सड़क दुर्घटना की नहीं, बल्कि पूरे चिकित्सा तंत्र, कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी और प्रशासनिक जवाबदेही की खामियों को उजागर कर दिया है। जब जीवन और मृत्यु के बीच कुछ मिनटों का फासला होता है, उस समय कागज, पहचान और कर्मचारी श्रेणी का फर्क नहीं पड़ता - फर्क सिर्फ मानवीयता और त्वरित सहयोग से पड़ता है। लोगों की मांग है कि नोवामुण्डी अस्पताल को सभी नागरिकों के लिए समान रूप से खुला घोषित किया जाए। आपातकालीन स्थिति में तकनीशियन और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। कागजी प्रक्रिया को प्राथमिक इलाज के बाद पूरा करने की नीति बनाई जाए। स्थानीय प्रशासन निष्पक्ष रवैया अपनाए और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय हो। सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार के लिए ठोस योजना बनाई जाए।
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