राज्यों की बहुमत वाली सरकारें अपने आपको राज्यपाल और राष्ट्रपति से भी ऊपर मानते हुए संविधान से हटकर अलग-अलग तरह के विधेयकों को पास कर देती है। संविधान के अनुसार सभी राज्यों में सभी विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति राज्यपाल होता है। जिसको राज्य के सभी विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त करने का अधिकार होता है परंतु हरियाणा और बंगाल में सरकारों ने कुलपति की नियुक्ति का अधिकार अपने पास ले लिया है। इस संवैधानिक परिवर्तन पर सुप्रीम कोर्ट मौन क्यों रहा ? सुप्रीम कोर्ट के एक जज के पास कमरा भरकर नोटों का जखीरा मिला। उसके बाद भी उसके खिलाफ ना तो एफ आई आर हुई और ना ही उसको गिरफ्तार किया गया। ऐसे में राष्ट्रपति को अपने अधिकारों का पालन कर उस जज को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था और उसके खिलाफ कानूनी करवाई और सीबीआई जांच करवानी चाहिए थी, उसे तुरंत जेल में भेजा जाना चाहिए था। ऐसे भी आरोप लगे हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ वकीलों का कोकस बना हुआ है,जो मुकदमों को मनचाहे जज की अदालत में लगवाते हैं और उससे सेटिंग कर अपने पक्ष में निर्णय करवा लेते हैं। यह बात भी अब सार्वजनिक होती जा रही है। वैसे भी आम जनता भारतीय न्याय प्रणाली में भ्रष्टाचार और लंबित कार्यशैली से परेशान है। जजों का पेशकार खुलेआम जजों के सामने ही जनता से पैसे लेता है। जब निर्णय का समय आता है तो वकीलों से सेटिंग कर मोटे पैसे लेते हैं।
पूरे देश में करोड़ों मुकदमे दशकों से पेंडिंग पड़े हैं,कुछ तो पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट या किसी भी न्यायालय द्वारा दूसरों को उपदेश देना और समय सीमा तय करना कहां तक उचित है ? और वह भी सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे हुए राष्ट्रपति जैसे व्यक्ति को। उपराष्ट्रपति पहले ही सुप्रीम कोर्ट की इस अतिसक्रियता पर प्रश्न उठा चुके हैं और अब राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रश्न रखकर उसके विवेक पर ही प्रश्न उठा दिया हैं । सुप्रीम कोर्ट के लिए राष्ट्रपति के प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा। इंजी. अतिवीर जैन 'पराग'
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