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Bhopal.कहानी-विजयी मुस्कान, Story-Winning Smile

Upgrade Jharkhand News. थानेदार रामसिंह अभी थाने में आकर बैठे ही थे कि तभी उनका मोबाइल बज उठा, उन्होंने मोबाइल उठाकर हल्लो कहा-तब उधर से आवाज आई-मैं मंत्री सूबेदार सिंह बोल रहा हूं।

'नमस्ते सर नमस्ते,'  रामसिंह मंत्रीजी की आवाज सुनकर उछल पड़े अत: आगे बोले-हां सर, किस लिए याद किया?

'सुना है आपका थाना कमाई का बहुत बड़ा खजाना है?' उधर से मंत्रीजी हंसते हुए बोले-

'आप तो सर आदेश दीजिए, मुझे क्या करना है?'    

'तुम्हें यह आदेश दे रहा हूं कि तुम्हारे थाने से एक पेटी का इंतजाम करना है।'

'सर, इंतजाम तो हो जाएगा। मगर.....'  

'मगर क्या?' थानेदार के रुकते देख मंत्री जी बोले।

'रकम कुछ कम नहीं हो सकती है?'   

'ठीक है पोन पेटी का इंतजाम कर दीजिए।' मंत्री सूबेदार ने जवाब दिया-पार्टी का सेमीनार हेतु ये व्यवस्था जुटाना है। पार्टी का बहुत बड़ा कार्यक्रम है।

'आप निश्चित रहिये सर, व्यवस्था हो जाएगी।' जब थानेदार रामसिंह ने यह बात कही तब उधर मंत्री सूबेदार सिंह ने फोन काट दिया।

अभी छह महीने पहले मंत्री सूबेदार सिंह की सिफारिश से इस थाने पर स्थानांतर होकर आए हैं। सिफारिश के बावजूद भी इस थाने में आने के लिए अपने बड़़े अधिकारी को दो लाख की रिश्वत देना पड़ी। इन छह  महिनों में उन्होंने बहुत कमा लिया है। यदि मंत्री जी का यह काम नहीं किया तब वे नाराज हो जायेंगे। उनका नाराज होना यानी कि स्थानांतर ऐसे सूखे इलाके में कर देंगे जहां ऊपरी आमदनी के लिए तरस जायेंगे। मगर वे इस इलाके से स्थानांतर नहीं चाहते हैं। क्योंकि यह इलाका ऊपरी आमदनी हेतु हरा-भरा है। जो भी पुलिस वाला आया यहां से कमाकर गया है।

अत: मंत्रीजी के आदेश का पालन उनके लिए बहुत जरूरी है। मंत्री जी का चहेता बनकर रहना इसलिए जरूरी है कि उनका अब टीआई पद पर सीधा प्रमोशन होगा। अत: मंत्री और अधिकारी को वे नाराज नहीं करना चाहते हैं। तब अपने स्टाफ के मान सिंह, शरद कुमार, अंजली शर्मा, कौसल्या, कैलाश मालवीय और किशन धोलपुरे को बुलाकर कहा- हाई वे पर चलना वाहनों की चैङ्क्षकग करना है।

'सर, ये अचानक प्रोग्राम कैसे बना लिया।' किशन धोलपुरे ने पूछा।

'मंत्री जी के प्रोग्राम तो अचानक ही बनते हैं।' रामसिंह ने जवाब दिया।

'क्या उगाई करने चलना है?' किशन धोलपुरे ने फिर पूछा।

'हां' संक्षिप्त सा उत्तर देकर रामसिंह 8-10 पुलिस वालों को लेकर हाई वे पर पहुंच गये। हर आने-जाने वाले वाहनों की चैकिंग करने लगे। इस तरह चैकिंग के बहाने ऊगाई का काम शुरू हो गया। उनमे कुछ ऐसे लोग भी थे जो ऊपरी पैसा देने के बजए नियमानुसार शासकीय रसीद प्राप्त कर रहे थे। हर आने-जाने वाला वाहन वाला जानता था कि चैकिंग नहीं बल्कि ऊगाई कर रहे थे। जनता यह भी जानती थी कि ये ऊगाई किसी राजनेता के दबाव में आकर कर रहे हैं। एक वाहन से तीन किलो अफीम पकड़ ली। उस वाहन को रोका, उसके कागजात चेक किये तब उसके पेट में में बंधी 3 किलो की अफीम मिली। पुलिस वाला थानेदार रामसिंह के पास ले गया। रामसिंह उससे कड़कती आवाज में बोला- किसके यहां माल देने जा रहे थे?

'साहब माफ कर दो, मुझे छोड़ दो।' वह आदमी हाथ जोड़कर गिड़ गिड़ाया।

'ऐसे कैसे छोड़ दें।' रामसिंह अकड़ते हुए बोला।

'साहब छोड़ दीजिए न।'  

'केस बनेगा, तस्करी करते पकड़े गये। बता किसके लिए यह धंधा कर रहे थे।' 

'साहब, केस मत बनाओ, गरीब आदमी हूं।' हाथ जोड़ते हुए वह आदमी बोला, 'गरीब हो तो ऐसा गलत धंधा क्यों करते हो?'    

'साहब, इस पापी पेट के लिए।' गिड़गिड़ाते हुए वह आदमी बोला।

'मैं सब जानता हूं, गरीब बनकर तुम छूटना चाहते हो। मगर मैं छोड़ूंगा नहीं।' रामसिंह रौब दिखाते हुए बोले-अच्छा ये बताओ, किसके लिए काम कर रहे थे।

'साहब, मुझे मालूम नहीं है।' वह आदमी बोला।'झूठ बोलते हो।' डांटते हुए रामसिंह बोला-सच-सच बता किसके लिए काम करते हो-अब चुप क्यों हो?

'साहब जो कुछ लेना है लेकर रफा-दफा कर दो न मामला।' आखिर इस आदमी ने जब अपने पत्ते खोले, रामसिंह भी यही चाहता था कि पैसे ले देकर मामला रफा-दफा करना। अत: नम्र पड़ता हुआ बोला-ठीक है तुम गरीब हो तो केस नहीं बनाता हूं। निकाल तीस हजार

'साहब, इतने पैसे मेरे पास नहीं है?' आदमी गिड़गिड़ाया।

'तो चल थाने में, एफ.आई.आर. दर्ज करता हूं और कल के अखबार में तेरे नाम सहित खबर निकालता हूं।'        

'नहीं साहब, ऐसा मत कीजिए। मैं मुफ्त में मारा जाऊंगा।'  

'जब अपनी इज्जत प्यारी है तब क्यों नहीं निकालत है।'  

'जी साहब निकालता हूं।' कहकर उस आदमी ने जेब से तीस हजार रुपए निकालक थानेदार को दे दिये और थानेदार ने उसे जाने दिया। तब किशन धोलपुरे बोले-साहब, आपने तो कमाल कर दिया।

'अरे धोलपुरे, पुलिस की नौकरी यूं नहीं करता हूं। ऐसे 3-4 मुर्गे और फंस जाए तो मंत्रीजी का टारगेट पूरा हो जाए।'  

फिर वे अपने काम में लग गये। इस तरह 5-6 घंटे तक यह चैकिंग की मुहिम चलती रही। जब एक लाख से अधिक रुपए इकट्ठे हो गये तब वे अपनी मुहिम स्थगित कर थाने में आ गये। नोट गिने कुल एक लाख तीस हजार की उगाई हुई। इसमें चालीस हजार शासकीय रसीद से आये अत: चालान से जमा करने पुलिस को लेकर शासकीय खजाने में जमा करने भेज दिया। 75 हजार मंत्रीजी के लिए रख लिए। शेष जितने बचे वे आपस में बांट लिए। फिर रामसिंह मंत्रीजी को फोन लगाते हुए बोले- सर, आपका काम हो गया।

'बहुत अच्छा, आप जैसे पुलिस अफसर की ही हमें जरूरत है। ऐसा कीजिए, आपके शहर के नेताजी भेरुलाल जी हैं, उन्हें ये पैसा दे देना। वे पार्टी का आयोजन करने वाले हैं। मैं उनको फोन कर देता हूं। वे आकर ले जायेंगे।'  

'ठीक है सर, उन्हें भेज दीजिए। मैं उन्हें दे दूंगा। एक निवेदन है।' नम्रता से रामसिंह बोले।

'आप डीआईजी से मेरे प्रमोशन की सिफारिश कर दीजिए न।' 

'हां कर दूंगा। आप निश्चित रहे।' कहकर मंत्रीजी ने उधर से फोन काट दिया। रामसिंह के अधरों पर विजय मुस्कान दौड़ गई। रमेश मनोहरा



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