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Bhopal. दृष्टिकोण -प्रश्नों के घेरे में शाब्दिक अराजकता, Viewpoint - literal chaos surrounded by questions


Upgrade Jharkhand News. क्या पंथ निरपेक्षता के नाम पर हर किसी को अपने मतानुसार आचरण की छूट है ? क्या किसी भी राष्ट्र में घुसपैठ का किसी को भी अधिकार है ? क्या घुसपैठ का किसी भी जागरूक नागरिक द्वारा समर्थन करना उचित है ? क्या देश का कोई भी नागरिक देश से बड़ा हो सकता है ? क्या किसी भी नागरिक को अभिव्यक्ति के नाम पर बिना किसी पुष्ट प्रमाण के कुछ भी कहने का अधिकार है ? क्या न्यायपालिका स्वविवेक से अभिव्यक्ति को परिभाषित कर सकती है ? क्या किसी शत्रु को लाभ पहुंचाने वाले वक्तव्यों के आधार पर संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का वाद योजित नहीं किया जा सकता ? ऐसे ही अनेक प्रश्नों की एक लंबी श्रृंखला है, जो अभिव्यक्ति के नाम पर देश में फैलाई जा रही शाब्दिक अराजकता के संबंध में प्रत्येक नागरिक को चिंतन हेतु विवश करती है।  विडंबना है कि जिन मुद्दों पर समूचे राष्ट्र को एकजुट होकर खड़े रहना चाहिए, उन मुद्दों पर कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश के सुरक्षाबलों और देश की सत्ता को घेरने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता कुछ लोगों को नहीं सुहा रही है। वह इस बात से गौरवान्वित नहीं हैं, कि चंद मिनटों में भारतीय वायु सेना ने अपनी उत्कृष्ट मारक क्षमता का प्रयोग करते हुए आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उनका सवाल है कि देश ने इस ऑपरेशन में अपने कितने सैन्य उपकरणों को खोया है। कुछ लोगों के हृदय में मानवीय करुणा का भाव जागृत हुआ है, कि शत्रुओं को निशाना क्यों बनाया गया, उनका पानी बंद क्यों किया गया।  



यही नहीं कुछ बुद्धिजीवी तो उन रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों के समर्थन में खड़े हो गए, जो देश के संसाधनों का प्रयोग करके राष्ट्र के विरोध में खड़े हैं। अजीब स्थिति है, जिसे देखो वही भारत को धर्मशाला समझकर मनमाना व्यवहार कर रहा है। उसे अपने ही देश में ऐसे समर्थक मिल रहे हैं, जो केवल बयानवीर हैं। रोहिंग्या घुसपैठियों को बचाये रखने वाले तत्वों से यदि यह कहा जाए कि यदि आपके मन में घुसपैठियों के प्रति करुणा का भाव है, तो उन्हें देश की जगह अपने घर में शरण देकर उनका लालन पालन अपने आर्थिक संसाधनों से करें, तब उनकी रोहिंग्याओं या अन्य घुसपैठियों के प्रति हमदर्दी लुप्त हो जाती है। समझ नहीं आता कि अभिव्यक्ति के नाम पर ऐसे तत्वों को देश कैसे ढो रहा है ? न्यायपालिका जो जरा जरा सी घटनाओं का स्वतः संज्ञान लेकर शासन प्रशासन पर न्याय का चाबुक चलाती हैं, उसका चाबुक देश के विरुद्ध विमर्श तैयार करके दुश्मन का साथ निभाने वाले तत्वों पर क्यों नहीं चलता ? ताज्जुब तब होता है, कि जब सत्ता विरोध के नाम पर कुछ लोगों एकपक्षीय होकर देश को बदनाम करने वाले विमर्श स्थापित करने में पीछे नहीं रहते। जिन तत्वों की जगह जेल में होनी चाहिए, उन्हें अभयदान देकर देश में अराजकता फ़ैलाने की छूट मिली हुई है। क्या यह जरुरी नहीं कि विघटनकारी अराजक तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति अभिव्यक्ति के नाम पर अपनी शाब्दिक मर्यादा का उल्लंघन न कर सके। डॉ. सुधाकर आशावादी



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