Upgrade Jharkhand News. अपनी नाज़ुक कलाइयों पर खरोंच पड़ने से तिलमिलाती लड़कियाँ , संकोच के कारण अपने मन की बात कहने से डरने वाली लड़कियाँ, कमरे में छिपकली देखकर डरने वाली लड़कियाँ आख़िर इतनी निडर कैसे हो गई, कि अपने जीवन साथी को मौत के घाट उतारने में भी उन्हें संकोच नही होता। कभी भाड़े के हत्यारों को बुलाकर अपने पति की हत्या की साजिश रचती हैं। पति को सुनसान जंगल में ले जाकर मौत के हवाले कर शव को खाई में फेंकती हैं, कभी क़त्ल करके शव को किसी ड्रम में डालकर सीमेंट के घोल से पत्थर बनाने का असफल प्रयास करती हैं। कोई अपने प्रेमी के साथ पति का गला घोंटकर शव के ऊपर साँप को बिठाकर पति की मौत का कारण साँप के द्वारा डँसा जाना बताती हैं। कोई विवाह के उपरांत से ही पति की कमाई पर कब्जा करके अपने मायके वालों का पोषण करती हैं तथा पति को आतंकित करके मृत्यु का वरण करने हेतु विवश कर देती है। मेघालय में हनीमून ट्रिप पर गई नव विवाहिता सोनम की कहानी भी पुरानी कहानियों से इतर प्रतीत नहीं होती। यह केवल एक युवक राजा रघुवंशी का क़त्ल नही है, बल्कि विवाह जैसी पवित्र संस्था में व्यक्त किए गए विश्वास का क़त्ल है। जिसे समय के साथ नियति मानकर भुला दिया जाएगा। अब विवाह जैसे पवित्र परिणय बंधन के औचित्य पर भी प्रश्न उठने स्वाभाविक हो गए हैं, ख़ासकर उन वैवाहिक रिश्तों पर जिन्हें दो परिवारों की सहमति से पारंपरिक रीति रिवाजों से स्थापित किया गया हो।
यूँ तो प्रेम और आकर्षण मन के विषय हैं। समाज में शारीरिक आकर्षण के चलते कब वासना में अंधे होकर युवक युवती अपनी नैतिक और सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन करके अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए अपने परिवार की इज्जत को दाँव पर लगाने से बाज न आएँ, मगर ऐसे कृत्य करने वालों को किसी और के विश्वास को छलने की छूट क्यों मिले ? दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह है कि वासना पूर्ति के लिए समाज में इतना खुलापन आ चुका है कि दैहिक संबंधों में न उम्र आड़े आ रही है और न ही आपसी रिश्ते। कहीं सास अपने दामाद के साथ व्याभिचार में लिप्त है तो कहीं सगे कहे जाने वाले भाई बहन, बुआ भतीजे, ससुर बहु सहित अनेक रिश्ते भी कलंक की कथा लिखने में पीछे नही रह गए हैं। इंदौर के राजा रघुवंशी हों या मेरठ के सौरभ राजपूत, दोनों का क़सूर केवल यही तो था कि एक की सोनम बेवफा हो गई और दूसरे की मुस्कान । समाज में न जाने कितनी ही ऐसी मुस्कान, सोनम और निकिता हैं, जिनकी बेवफ़ाई से अनेक निर्दोष पति अपनी जान गँवाने के लिए विवश हो रहे हैं।
मनोविज्ञानियों व समाजशास्त्रियों के लिए यह गंभीर चिंतन का विषय है, कि समाज किस दिशा में अग्रसर हो रहा है ? क्या विवाह जैसी संस्था का अस्तित्व चरमराने लगा है ? क्या नारी के सशक्तिकरण में इस प्रकार के आचरण को स्वीकारा जा सकता है। क्या हत्या, हत्या की साजिश जैसे कृत्यों के चलते अपराधी युवतियाँ किसी प्रकार की दया या संवेदना की पात्र हैं ? नित्य ही ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति प्रकाश में आ रही है। कुछ समय के लिए मीडिया को भी घटना के अनेक पहलुओं पर खोजबीन करके अपने अपने तरीक़े से घटना प्रस्तुत करने का अवसर मिल जाता है। सोशल मीडिया भी पक्ष विपक्ष में अपनी भड़ास निकालने लगता है। विचारणीय बिंदु यह है कि समाज में ऐसी घटनाओं को बेखौफ होकर अंजाम देने का दुस्साहस आख़िर बढ़ कैसे रहा है ? डॉ. सुधाकर आशावादी
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