राजकपूर पुण्यतिथि 2 जून
Upgrade Jharkhand News. भारत में आरंभिक दौर की फिल्मों में तीन नायकों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। यह थे ग्रेट शो मेन के नाम से मशहूर राजकपूर, अभिजात्य तथा रूमानी शख्सियत के नायक दिलीप कुमार तथा सदाबहार अभिनेता देवानंद। इन तीनों ने अपने अभिनय की अमिट छाप भारतीय सिनेमा पर छोड़ी। इनमें राजकपूर ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने भारतीय सिनेमा को प्रेरक और मनोरंजक फिल्में तो दी ही साथ ही उन्होंने कई करुणा भरी भूमिकाओं को भी अमली जामा पहनाया। यह एक संयोग ही था कि राजकपूर की पहली फिल्म 'नीलकमल वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही आयी। यद्यपि इस फिल्म के प्रदर्शन तक राजकपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भी अपने पुत्र की प्रतिभा से परिचित नहीं थे। उन्होंने इस फिल्म के निर्देशक केदार शर्मा से स्वयं यह कहा था कि कांपता बदन और मिमियाती आवाज लेकर राज कितना चलेगा? पर अंततः यही कांपता बदन और थरथराती आवाज राजकपूर के साथ जुड़ गई जिसकी आज भी कई नायक नकल करने की कोशिश करते हैं। (याद कीजिये फिल्म ईश्वर के अनिल कपूर को) बाद में यही युवक इंकलाब, चित्तौड़ विजय, दिल की रानी, अमर प्रेम और जेल यात्री जैसी फिल्मों में भी आया। राजकपूर ने इन फिल्मों से इतना धन कमा लिया कि अगले ही वर्ष 1948 में तब की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री नर्गिस के साथ फिल्म बनाने की घोषणा कर दी। 'आग' राजकपूर द्वारा निर्मित और निर्देशित पहली फिल्म थी। यह फिल्म दर्शकों की भीड़ तो नहीं जुटा सकी लेकिन इस फिल्म ने राजकपूर की निर्देशकीय क्षमता को नया आयाम अवश्य दिया। यह फिल्म उस समय बन रही फिल्मों की लीक से कुछ अलग थी।
राजकपूर की पहली फिल्म की व्यवसायिक असफलता को दूसरी फिल्म 'बरसात' ने भुला दिया। इस फिल्म ने व्यवसायिक रूप से आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। इस फिल्म का गीत-संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ।इस फिल्म के गीतों की लोकप्रियता तो आज भी कायम है। संभवतः इसी फिल्म से राजकपूर ने फिल्मों के गीत-संगीत की ओर ध्यान देना प्रारंभ किया। 'बरसात' के बाद राजकपूर ने 'आवारा' फिल्म बनायी। इस फिल्म की और इसके गीत-संगीत की लोकप्रियता को तो समन्दर भी न रोक सका और रूस तथा ईरान तक इसका संगीत लोकप्रिय हुआ। कहा जाता है कि माओ त्से तुंग भी इस फिल्म को बहुत पसंद करते थे। 'आवारा' ने राजकपूर को सफलता ने नये आयाम तो दिये ही साथ ही उन्हें रूमानी भूमिका में प्रवीण अभिनेता की छवि भी प्रदान की। राजकपूर ने श्री 420, मेरा नाम जोकर,अनाड़ी,जिस देश में गंगा बहती है तथा सपनों का सौदागर में भी इसी प्रकार की छवि को बनाये रखा। आवारा की अपार सफलता ने राजकपूर को व्यवसायिक सफलता का फार्मूला भी दिया। इसी फार्मूले को राजकपूर ने बॉबी और प्रेमरोग में भी खूबसूरती से इस्तेमाल किया।
राजकपूर की फिल्मों की चर्चा नर्गिस के बिना अकल्पनीय ही है। राजकपूर द्वारा अभिनीत पहली बार निर्मित एवं निर्देशित फिल्म की नायिका नर्गिस थी। इस मशहूर जोड़ी ने कुल सोलह फिल्मों में साथ-साथ अभिनय किया। राज नर्गिस की जोड़ी पहली बार 1948 में 'आग' फिल्म में परदे पर आयी तथा 1956 में जागते रहो इस जोड़ी की आखिरी फिल्म थी। राज नर्गिस अभिनीत कुल सोलह फिल्मों में से 'बरसात', 'आवारा', 'श्री 420' और 'चोरी चोरी" सुपरहिट मानी जाती है, लेकिन शेष फिल्में बुरी तरह असफल हुई। नर्गिस के अलावा राजकपूर ने मधुबाला, निम्मी, सुरैया, मीना कुमारी और माला सिन्हा के साथ भी नायक की भूमिकायें की हैं। नायक के रूप में राजकपूर ने लगभग 50 फिल्मों में अभिनय किया। 'आग', 'बरसात' 'आवारा' 'श्री 420", "संगम' और 'मेरा नाम जोकर' उनके द्वारा निर्देशित एवं स्वयं अभिनीत फिल्में हैं। संगम की अपार सफलता के बाद राजकपूर ने 'मेरा नाम जोकर' बनायी जिसे घनघोर असफलता का मुह देखना पड़ा। कहा जाता है कि राजकपूर 'मेरा नाम जोकर को अपने पुत्र की भांति मानते थे, और इस फिल्म को अपने जीवन की सबसे अच्छी फिल्म मानते थे, लेकिन शायद यह दुर्भाग्य ही था कि आम जनता को यह फिल्म पसंद नहीं आयी।
मेरा नाम जोकर की असफलता से उबरने के लिये राजकपूर ने 'बॉबी' जैसी हल्की फिल्म बनायी। राजकपूर के दूसरे बेटे ऋषि कपूर को लेकर बनायी गयी इस किशोरवय की प्रेम कहानी को अपार सफलता मिली। इसके बाद राजकपूर ने 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम् , 'प्रेम रोग' और 'राम तेरी गंगा मैली' फिल्मों का निर्देशन किया। यद्यपि इन सभी फिल्मों में तत्कालीन कुरीतियों और समस्याओं को उभारा गया था लेकिन फिल्मों की सफलता के लिये राजकपूर ने अपनी फिल्मों की नायिकाओं के सौंदर्य का भी भरपूर उपयोग लिया। बॉबी में डिंपल, सत्यम् शिवम् सुन्दरम् में जीनत अमान और राम तेरी गंगा मैली में मंदाकिनी इसके उदाहरण हैं। हिन्दी फिल्मों के ग्रेट शो मेन राजकपूर को 'संगम', 'मेरा नाम जोकर', 'प्रेम रोग' और 'राम तेरी गंगा मैली के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्म फेयर पुरस्कार तथा अनाड़ी के लिये 1959 में और जिस देश में गंगा बहती है के लिये 1961 में राजकपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। यह एक विडम्बना ही थी कि राजकपूर अपना एक और सपना हिना पूरा नहीं कर पाये और वर्ष 1988 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार ग्रहण करने के बाद उनका आखिरी सफर आरंभ हो गया।
राजकपूर का फिल्मी सफर चालीस वर्ष तक चला। 1947 से लेकर 1988 तक वे फिल्मी दुनिया में सतत् गतिशील बने रहे। यहीं कारण था कि वे एक महान शो मेन के रूप में भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गये। राजकपूर ने अपने फिल्मी जीवन में जो कुछ दुनिया को दिया वह अविस्मरणीय है। कपूर परिवार के अभिनय का सिलसिला पृथ्वीराज कपूर (राजकपूर के पिता) से आरंभ हुआ, फिर राजकपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर से होता हुआ रणधीर, ऋषि और राजीव कपूर तक पहुंचा। राजकपूर की पोतियों करिश्मा कपूर और करीना कपूर ने इसे आगे बढ़ाया और अब कपूर परिवार से अभिनय की कमान ऋषि कपूर के पुत्र रणबीर कपूर संभाले हुए हैं। यद्यपि राजकपूर के वंशजों को राजकपूर जैसी सफलता अर्जित करने के लिये कड़ा संघर्ष करना होगा, लेकिन यह सिलसिला तो चलता ही रहेगा राजकपूर के शब्दों में शो मस्ट गो ऑन। अंजनी वर्मा
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