Upgrade Jharkhand News. ईश्वर की प्रोडक्शन और पैकिंग इंडस्ट्री वाकई अद्वितीय है, अद्भुत है, बेमिसाल है। एक छोटी सी मूंगफली देखिए ना! हर दाना गुलाबी पन्नी की चादर में लिपटा हुआ, मखमली नर्मी के साथ, ब्राउन टफ कवर में एकदम सुरक्षित। कोई खरोंच नहीं, कोई दाग नहीं। बाहर से कुरकुरा अंदर से मुलायम। पैकेजिंग पर्फेक्शन का परचम। मटर के दाने? हरी-भरी चमकदार रैपर में सजे हुए, जैसे छोटे-छोटे हरे मोती। वे भीतर से ताजगी भरे, बाहर से चमकदार। और नारियल? भला उस जैसे सख्त, भारी-भरकम उत्पाद के लिए हार्ड कवर से बेहतर क्या हो सकता है? जंगल की गर्मी, समुद्र की नमी, ऊंचे पेड़ से गिरने का झटका सब झेल लेता है वह हार्ड शैल। सचमुच, ईश्वर का हर काम समयबद्ध, व्यवस्थित और पैकेजिंग मास्टरपीस है।
फिर आता है मानव "ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना"। यहीं पर ईश्वर की उस अद्भुत पैकिंग फैक्ट्री और प्रॉडक्ट की कहानी में एक मोड़ आ जाता है। क्या वाकई मानव का पैकेजिंग जीनियस उसी स्तर का है? थोड़ा गहराई से देखने पर तस्वीर कुछ और ही बयां करती है। सोचिए, ईश्वर की डिवाइन पैकेजिंग कंपनी में बैठे डिजाइनर्स ने मनुष्य के लिए क्या-क्या प्लान किया होगा। शायद उन्होंने सोचा होगा "चलो, इस बार कुछ बहुत खास करते हैं। सबसे कॉम्प्लेक्स मशीनरी, सबसे एडवांस्ड सॉफ्टवेयर , दिमाग, इमोशनल रेंज से लैस, क्रिएटिविटी के साथ। सुपर प्रीमियम प्रोडक्ट!" लेकिन जब पैकेजिंग की बारी आई... कहीं न कहीं कुछ चूक हो गई लगती है। पहला सवाल तो यही उठता है ,क्या "सर्वश्रेष्ठ रचना" के लिए यह पैकेजिंग उचित है? मूंगफली को गुलाबी पन्नी मिली, मटर को हरी रैपर, नारियल को हार्ड शैल। मनुष्य को मिला क्या? एक नाजुक चमड़ी का आवरण, जो धूप से झुलस जाता है, ठंड से कांपता है, थोड़ी सी खरोंच से खून बहने लगता है। इंसान सन क्रीम , पाउडर , नाइट क्रीम खरीद कर भी परेशान है।
पीठ का डिजाइन? एक ऐसी रीढ़ की हड्डी जो सीधे खड़े होने के लिए तो बनी है, लेकिन डेस्क जॉब, भारी बैग और गलत मुद्रा के आगे बहुत जल्दी विद्रोह कर देती है स्लिप डिस्क, बैक पेन की शिकायतें आम हैं। आंखें, जो दुनिया देखने का अद्भुत साधन हैं, लेकिन उम्र के साथ या तो कमजोर पड़ जाती हैं या मोतियाबिंद की शिकार हो जाती हैं, बिना चश्मे या लेजर सर्जरी के काम नहीं करतीं। क्या यह वही परफेक्ट पैकेजिंग है जो मूंगफली के दाने को मिली? दो दो किडनी की लक्जरी पर फिर भी डायलिसिस का झंझट। और फिर फंक्शनल डिफेक्ट्स। एपेंडिक्स एक ऐसा अंग जिसका कोई ज्ञात काम नहीं, लेकिन जब चाहे फटकर जानलेवा बन जाता है। दांतों की कहानी? बचपन में दूध के दांत गिरते हैं, फिर परमानेंट आते हैं जो जीवन भर चलने चाहिए, लेकिन चीनी, एसिड और बैक्टीरिया के आगे बहुत जल्दी घुटने टेक देते हैं, बिना डेंटिस्ट के बचाव असंभव। घुटने और कूल्हे के जोड़ चलने-फिरने की मूलभूत आवश्यकता के लिए पर कितनी आसानी से घिस जाते हैं, रिप्लेसमेंट सर्जरी की मांग करते हैं। क्या ईश्वर की पैकिंग लाइन पर कोई क्वालिटी चेक नहीं होता था इन "सर्वश्रेष्ठ मॉडल्स" के लिए?
सबसे बड़ी पैकेजिंग चूक तो मेंटल हार्डवेयर के साथ लगती है। ईश्वर ने अद्भुत दिमाग दिया, सोचने-समझने, रचनात्मकता, प्रेम करने की अद्भुत क्षमता। लेकिन साथ ही साथ, इसमें डिप्रेशन, एंग्जाइटी, फोबिया, जैसे "सॉफ्टवेयर बग्स" क्यों पैक कर दिए? क्या ये वो गुलाबी पन्नी या हार्ड शैल के बराबर की सुरक्षा है जो अन्य उत्पादों को मिली? एक मूंगफली का दाना अपनी पैकेजिंग में सुरक्षित और खुश रहता है। मनुष्य अक्सर अपने ही दिमाग के भीतर कैद और पीड़ित महसूस करता है। क्या यही था "सर्वश्रेष्ठ" का मापदंड?और हां, सबसे बड़ा मिसिंग आइटम, इस्तेमाल करने का निर्देश , यूजर मैनुअल । नारियल के हार्ड कवर को तोड़ने के तरीके तो लोग जानते हैं। मटर को रैपर से निकालना आसान है। मूंगफली की पन्नी उतारने में कौन सी बुद्धिमानी लगती है? पर मनुष्य? उसे कोई क्लियर मैनुअल नहीं मिला। कैसे जियें? कैसे तनाव मैनेज करें? कैसे दूसरों के साथ रहें? कैसे इस जटिल मशीन शरीर और मन की देखभाल करें? इसकी जगह हमें धर्म, दर्शन, विज्ञान और ट्रायल-एंड-एरर के भरोसे छोड़ दिया गया। नतीजा? भारी भ्रम, संघर्ष और गलतियां। क्या यह उस परफेक्ट पैकिंग इंडस्ट्री की शान के अनुरूप है?
तो क्या निष्कर्ष निकालें? क्या ईश्वर की पैकिंग इंडस्ट्री मनुष्य के मामले में फेल हो गई? या फिर यह एक जानबूझकर किया गया एक्सपेरिमेंट था? शायद "सर्वश्रेष्ठ रचना" का मतलब यह नहीं कि वह सबसे परफेक्टली पैक्ड है, बल्कि यह कि उसमें खुद को ठीक करने, सीखने, अनुकूलित होने और अपनी पैकेजिंग की कमियों को पूरा करने की अद्भुत क्षमता दी गई है? हम चश्मा लगाते हैं, घुटने बदलवाते हैं, थेरेपी करते हैं, ज्ञान अर्जित करते हैं। शायद मानव की असली "सर्वश्रेष्ठता" उसकी अपूर्ण पैकेजिंग के बावजूद या शायद उसी की वजह से खुद को सुधारने, संवारने और जीवन की चुनौतियों से लड़ने की अदम्य क्षमता में निहित है। मूंगफली सिर्फ खाई जा सकती है, मनुष्य खुद अपनी पैकेजिंग को री-डिजाइन करने का प्रयास करता रहता है। यही शायद उसकी सच्ची महानता है । ईश्वर की प्रोडक्शन, पैकिंग में एक जानबूझकर छोड़ा गया, रहस्यमय और चुनौतीपूर्ण, लेकिन संभावनाओं से भरा अधूरापन। बाकी सब तो बस पन्नी और रैपर का खेल है! डोंट जज एनी थिंग ऑन बेसिस ऑफ कवर ओनली। विवेक रंजन श्रीवास्तव
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