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Chaibasa हतनाबुरू और मारागपोंगा गांव के बीच मुख्य ग्रामीण सड़क पर भूस्खलन, आवागमन बाधित Landslide on the main rural road between Hatnaburu and Maragponga village, traffic disrupted

 


Guwa (Sandeep Gupta) । अत्यंत नक्सल प्रभावित सारंडा जंगल में भारी बारिश का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। हतनाबुरू और मारागपोंगा गांव के बीच मुख्य ग्रामीण सड़क पर पहाड़ की मिट्टी धंसकर आ गिरी। यह वही सड़क है जो दर्जनों गांवों को आपस में जोड़ती है और सारंडा के लोगों के जीवन की धड़कन मानी जाती है। पर अब वहां सिर्फ कीचड़, पत्थर और मलबा पसरा है। शनिवार को छोटानागरा में साप्ताहिक हाट बाजार लगता है। यह वही बाजार है जहां सारंडा के लोग अपने खेतों की सब्जियां, जंगल का महुआ, साल पत्ता, तसर और लकड़ी बेचकर चूल्हा जलाने के लिए पैसा जुटाते हैं। लेकिन सड़क बंद होते ही यह धंधा चौपट हो सकता है। एक किसान नाथु बहंदा ने रोष जताते हुए कहा हमारा पेट पर वार कर दिया यह वर्षा। जब रास्ता ही बंद, तो बाजार कैसे पहुचेंगें। सड़क ठप होने से बच्चे अब स्कूल नहीं पहुंच सकते। 



बारिश से पहले जहां किसी तरह साइकिल या पैदल बच्चे स्कूल जाते थे, वहीं अब उनके कदम गांव की गलियों तक सीमित हो गए हैं। मरीजों के लिए तो यह और भी खतरनाक स्थिति है। गांववालों का कहना है कि अगर किसी को अचानक बुखार, डेंगू या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना पड़े, तो अब यह लगभग नामुमकिन हो चुका है। एक ग्रामीण ने गुस्से से कहा अस्पताल का रास्ता बंद है, मतलब हमारी जिंदगी भी बंद है। सारंडा जंगल में नक्सलियों पर काबू पाने के लिए जगह-जगह सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के कैंप बने हैं। इन कैंपों तक खाद्यान्न, दवाइयां और जरूरी सामग्रियां इसी सड़क से पहुंचाई जाती हैं। सड़क ठप होने का असर सीधा सुरक्षा बलों की आपूर्ति पर पड़ा है। भूस्खलन के बाद ग्रामीणों ने उम्मीद की थी कि जिला प्रशासन या वन विभाग तुरंत जेसीबी मशीनें भेजकर मलबा हटाएगा। लेकिन घंटों बीतने के बाद भी मौके पर कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। ग्रामीणों ने खुद कुदाल और फावड़ा लेकर मिट्टी हटाने की कोशिश की, पर विशाल मलबा उनके सामर्थ्य से बाहर है।



उनका कहना है हम वोट देने लायक हैं, लेकिन हमारी जान की परवाह किसी को नहीं। सरकार सिर्फ चुनाव में याद करती है। सारंडा का इलाका घने जंगलों और ऊंचे-नीचे पहाड़ों से घिरा है। बारिश के मौसम में यहां अक्सर भूस्खलन होता है। लेकिन इन घटनाओं से निपटने के लिए न तो प्रशासन कोई स्थायी उपाय करता है और न ही सड़क निर्माण में गुणवत्ता का ख्याल रखा जाता है। जरा सी बारिश होते ही सड़कें ध्वस्त और पहाड़ धंसने लगते हैं। इस संकट का सबसे ज्यादा बोझ बच्चों और महिलाओं पर पड़ा है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, जिससे पढ़ाई ठप है। महिलाएं बाजार नहीं पहुंच पा रहीं, जिससे घर की जरूरतें पूरी नहीं हो रहीं। गर्भवती और बीमार महिलाओं की हालत बेहद नाजुक हो सकती है।



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