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समय चक्र का गठबंधन प्रगाढ़ हुआ जाता है
अबाध गति से पेंग बढ़ाता नूतन वर्ष आता है
आओ विचारें अतीत में क्या खोया क्या पाया
यथार्थमयी चिंतन हेतु ही नूतन वर्ष है आया
आओ रचे नवगीत बुनें नित श्रृंगारिक सपने
आज संजोएं मृदु भाव सुमन जीवन में अपने।
निसंदेह गतिशील जीवन में कोई समय ऐसा अवश्य आता है, कि जब व्यक्ति अपने जीवन में अपनी उपलब्धियों का आकलन करता है, कि अतीत,वर्तमान और भविष्य के मध्य वह कहाँ खड़ा है। जिंदगी में धड़कनों की महत्ता को समझते हुए जिंदगी में सदा मीठी बातें करो, कड़वी बातों में जीना है किस काम का, प्रवचन सुनने में अच्छा लगता है, मगर क्या आज के दौर में ऐसा संभव है। सर्वविदित है कि समय गति का परिचायक है, परिवर्तन का परिचायक है। जिसने भी घड़ी का आविष्कार किया होगा, उसका उद्देश्य यही रहा होगा, कि लोग समय के साथ समायोजन करने में समर्थ हों। सेकेंड से मिनिट और मिनिट से घंटों की अवधि तय करते हुए दिन, सप्ताह, महीने साल का सफर नए वर्ष में कब परिवर्तित हो जाता है और कब नया वर्ष बीते साल में बदलकर अतीत बन जाता है, इसका पता किसी समृद्ध व्यक्ति को नहीं चलता, अलबत्ता धन और सुविधाओं के अभाव वाले व्यक्ति को अवश्य ही समय का ज्ञान रहता है, कि जिसे आँख खुलते ही अपना पेट भरने के लिए भटकना पड़ता है। वह अपने आप को बार बार अच्छे दिन आने की दिलासा देकर समझाता रहता है, कि सब्र कर, अपने भी अच्छे दिन आएंगे।
एक समय था कि जब हैप्पी न्यू ईयर का बड़ा क्रेज हुआ करता था, विदेशों से नए साल का जश्न मनाएं जाने की शुरुआत होती थी, आतिशबाजी के अलग नज़ारे हुए करते थे, भारत तक आते आते न्यू ईयर का क्रेज कुछ कम हो जाया करता था। उस दौर में हर जेब में मोबाइल अपना स्थान नहीं बना पाया था। चिट्ठी पत्री का दौर था। बाजार में ग्रीटिंग कार्ड से दुकानें सज जाया करती थी। विशिष्ट संदेश लिखे ग्रीटिंग कार्ड आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे। संदेशों का आदान प्रदान डाकघरों के माध्यम से हुआ करता था। पोस्टमैन की भूमिका सर्वाधिक हुआ करती थी। घर परिवारों में पोस्टमैन की प्रतीक्षा अधिक की जाती थी। पोस्टमैन को देखते ही परिवारों में विशेष संदेश की उम्मीद जाग जाया करती थी। नया वर्ष अब भी आता है, मगर कुछ नयापन का एहसास नहीं कराता। रोज की तरह भोर का सूरज नए दिन की घोषणा करता है और धीरे धीरे पुराने ढर्रे पर जिंदगी चल पड़ती है।
ज़िंदगी में नयेपन की तलाश चलती रहती है। जिसे देखो, वही बीती ताहि बिसारि के आगे की सुधि लेना चाहता है, मगर आगे की सुधि तो तभी अच्छी तरह से ली जा सकती है, जब पिछले दायित्वों को पूर्ण किया जा चुका हो। ऐसा अक्सर नहीं होता। यह कहने भर तक ही सीमित रहता है कि छोड़ों कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे, सब मिलकर नई कहानी, हम हिंदुस्तानी। हम हिंदुस्तानी तो हैं, मगर क्या हम कल की बातें छोड़ने के लिए तैयार हैं ? सवाल यह भी है। नया साल तो हर बरस आता है, यह कुम्भ का मेला नहीं, जो बारह बरस के अंतराल में एक बार आए। इसे आना ही है। सवाल यह है कि क्या हम नयेपन के लिए उन सभी पूर्वाग्रहों को त्यागने के लिए तैयार हैं, जिनके अंतर्गत हम रंगभेद, जाति भेद, किसी धर्म के आस्था भेद के भेदभाव से मुक्त होकर मानवता के सुर में सुर मिलाने के लिए तैयार हों ? इक्कीसवीं सदी अपनी शतकीय पारी के छब्बीसवें पायदान पर कदम रख रही है और हम आज भी ऐसे संकीर्ण पिछड़ेपन में जी रहे हैं, जिसमें उद्दात्त विचारों का अभाव है। आदमी भूख से अधिक खाने की फिराक में लगा है। अपनी थाली पर उसकी नजर नहीं है। वह औरों की थाली पर बुरी नजर गड़ाए हुए है। गरीबों, दलितों, वंचितों के नाम की माला जपते हुए लोग अपनी और अपने परिवारों की समृद्धि व सम्पन्नता की राजधानी बनाने में जुटे हैं। बेघर के आदमी को मुफ्त में घर और भूखे को मुफ्त की रोटी का सपना दिखाने वाले मदारी डुगडुगी बजा रहे है। साथ में शोर मचा रहे हैं - कागज़ कलम दवात ला, लिख दूँ घर तेरे नाम सनम।
बीता वर्ष देश में अनेक जघन्य अपराधों का तोहफा देकर गया। पति पत्नी और वो के मध्य छीजते विश्वास का क़त्ल कर गया। कहीं नीला ड्रम एक निरीह पति की लाश के टुकड़ों से भरा गया, तो कहीं पति की हत्या के उपरांत उसकी मौत को सर्प दंश से हुई मौत दर्शाने का प्रयास किया गया। निसंदेह बीता वर्ष समाज में होने वाले भयावह बदलाव का साक्षी बना। नववर्ष 2026 हमारे सम्मुख है। यह कामना करनी चाहिए,कि नया वर्ष सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सराहनीय भूमिका का निर्वाह करेगा। डॉ. सुधाकर आशावादी

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