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Jamshedpur कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह: बिना भारतीय पासपोर्ट के 31 साल विदेश में रहे, भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई Who was Raja Mahendra Pratap Singh: Lived abroad for 31 years without an Indian passport, formed India's first government-in-exile

 


Upgrade Jharkhand News. एक दिसंबर 1886 को जन्मे महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत के राजा थे। जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिनती अपने क्षेत्र के पढ़े-लिखे लोगों में होती थी। उनका विवाह जिंद रियासत की बलबीर कौर से हुआ था। 


पहली निर्वासित सरकार बनाई, भारतीय पासपोर्ट तक नहीं थाlराजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी। इसके बावजूद उनके पास भारतीय पासपोर्ट नहीं था। उन्होंने अफगान सरकार के सहयोग से 1 दिसंबर 1915 को पहली निर्वासित हिंद सरकार का गठन किया था। आजादी का बिगुल बजाते हुए वह 31 साल आठ महीने तक विदेश में रहे। हिंदुस्तान को आजाद कराने का यह देश के बाहर पहला प्रयास था। अंग्रेज सरकार से पासपोर्ट मिलने की बात संभव ही नहीं थी। उनके पास अफगानिस्तान सरकार का पासपोर्ट था।


इसके बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने समुद्र मार्ग से ब्रिटेन पहुंचने की योजना बनाई। बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सोवियत संघ, जापान, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की जैसे देशों की यात्रा की। 1946 में वे शर्तों के तहत हिंदुस्तान वापस आ सके।


अन्तरिम सरकार का गठन-भारत की अन्तरिम सरकार का गठन 1916 की शुरुआत में इरादा और उद्देश्य की गंभीरता पर जोर देने के लिए किया गया था। सरकार में राजा के रूप में राजा महेंद्र प्रताप, प्रधान मंत्री के रूप में बरकतुल्लाह और भारत के मंत्री के रूप में उबैद अल सिंधी, युद्ध मंत्री के रूप में मौलवी बशीर और विदेश मंत्री के रूप में चंपारण पिल्लई थे। इसने ज़ारिस्ट रूस, रिपब्लिकन चीन, जापान से समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया। ब्रिटेन के खिलाफ विद्रोह की घोषणा करते हुए गैलिब पाशा से भी समर्थन प्राप्त किया गया था।1917 में रूस में फरवरी क्रांति के बाद, प्रताप की सरकार को नवजात सोवियत सरकार के साथ पत्राचार करने के लिए जाना जाता है। 1918 में, बर्लिन में कैसर से मिलने से पहले महेंद्र प्रताप ने पेट्रोग्राद में ट्रॉट्स्की से मुलाकात की, दोनों से ब्रिटिश भारत के खिलाफ लामबंद होने का आग्रह कियाl मिशन और उस समय जर्मन मिशन के प्रस्तावों और संपर्क ने देश में राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाला, राजनीतिक परिवर्तन की एक प्रक्रिया शुरू हुई जो 1919 में हबीबुल्ला की हत्या और सत्ता के हस्तांतरण के साथ समाप्त हुई। नसरुल्लाह और उसके बाद अमानुल्लाह और तीसरा एंग्लो-अफगान युद्ध का शिकार, जिसने अफगान स्वतंत्रता का नेतृत्व किया।


कांग्रेस के साथ शुरुआत से ही नहीं बनती थी बात-जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति में जर्मनी और जापान मित्र देश नहीं रहे थे, जबकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इन देशों से मदद मांगकर आजादी की लड़ाई शुरू की थी। ऐसे में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को शुरू से ही कांग्रेस में बहुत ज्यादा तरजीह नहीं मिली।



संयुक्त राष्ट्र जैसी परिकल्पना पहले ही कर चुके थेlसन 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। इससे पहले ही राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने विश्व शांति के लिए ‘संसार संघ’ की परिकल्पना की थी। उन्होंने प्रेम धर्म और संसार संघ की परिकल्पना के जरिये भारतीय संस्कृति के प्राण तत्व वसुधैव कुटुम्बकम् को साकार करने का प्रयास किया था।  डॉ. अनूप शर्मा ने 23 वर्ष पहले ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजा महेंद्र प्रताप की भूमिका’ विषय पर इतिहासकार डॉ. बिशन बहादुर सिंह के निर्देशन में शोध किया था। डॉ. अनूप शर्मा का कहना है, राजा महेंद्र प्रताप के साथ राजनीतिक दलों ने न्याय नहीं किया। उनको जो सम्मान मिलना चाहिए, वह नहीं मिला। राजा महेंद्र प्रताप अपने समय के बड़े क्रांतिकारी, महत्वाकांक्षा रहित राजनीतिज्ञ, महान त्यागी, महादानी, बेजोड़ शिक्षाविद एवं देशभक्त थे।



उनका मानना था कि संसार संघ की परिकल्पना से देश कभी आपस में नहीं लड़ेंगे। सारा विश्व पांच प्रांतों में विभक्त हो, जिसकी एक राजधानी और एक सेना हो। एक न्यायालय व एक कानून हो। संसार संघ की सेना में सभी देशों के सैनिक शामिल हों। किसी भी देश की शक्ति संसार संघ की सेना से अधिक न हो। एक सेना होने से प्रत्येक देश का सैनिकों पर होने वाला व्यय रुक जाएगा और उस धन का उपयोग मानव कल्याण के लिए किया जाएगा।



राजा महेंद्र प्रताप सिंह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र थे। जब वे यहां पढ़ते थे, तब इस यूनिवर्सिटी को मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल कहा जाता था। महेंद्र प्रताप ने इस विश्वविद्यालय के विकास के लिए जमीन भी दी थी। उन्होंने 1929 में करीब तीन एकड़ की जमीन दो रुपए सालाना की लीज पर दे दी थी।  यह जमीन मुख्य कैंपस से अलग शहर की ओर है जहां आज आधे हिस्से में सिटी स्कूल चल रहा है और आधा हिस्सा अभी खाली है।


वृंदावन में भी बनवाया था प्रेम महाविद्यालय-अलीगढ़ के पड़ोसी जिले मथुरा के वृंदावन में स्थित राजा महेंद्र प्रताप सिंह की समाधि अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने वृंदावन में अपनी जमीन पर प्रेम महाविद्यालय नाम से इंटर कॉलेज बनवाया था। यह महाविद्यालय स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है। इसके सामने यमुना किनारे स्थित उनकी समाधि है, जो अब बदहाल स्थिति में है। यहां के लोगों ने उनके समाधि स्थल को विश्व घाट के रूप में विकसित करने की मांग उठाई है। वृंदावन स्थित राजा साहब की समाधि स्थल की ओर किसी का ध्यान नहीं है। उन्होंने राजा साहब को भारत रत्न की मांग भी उठाई है।


26 अप्रैल 1979 में उनका देहान्त हो गया। मार्च 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके नाम पर अलीगढ़ में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की है।



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