अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने के लिए नई पीढ़ी को आगे आने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के स्वाभिमान और अस्तित्व की रक्षा के लिए संताली राइटर्स का योगदान अभूतपूर्व है। हर साल यह संगठन ओल चिकी उत्थान के लिए काम करती है। अपने दैनिक जीवन से समय निकाल कर ये भाई बहन ओलचिकी के लिए काम कर रहे हैं और पंडित रघुनाथ मुर्मू के काम को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने संविधान के संताली अनुवाद पर कहा कि अटल बिहारी बाजपेयी के 100 साल होने पर ओलचिकी में संविधान का प्रकाशन किया गया। यह कार्य भी संताली समाज को सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। राष्ट्रपति ने कहा कि संताली आठवीं अनुसूची में शामिल हुआ है।
इसलिए इसमें भी देश चलाने वाले रूल रेगुलेशन की जानकारी हमारे लोगों को होनी चाहिए। नियम कानून नहीं जानने के कारण कई बेगुनाह लोग जेल में रहे। हमारे लोगों को शिक्षित होना चाहिए. आज मैं जिस जगह पहुंची हूं, इसमें अपने लोगों का प्रेम और ईश्वर का आशीष है। इसलिए मेरा कर्तव्य है कि अपने समाज और लिपि के लिए काम करूं। उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि भारत और विश्व में कई जगह संथाल निवास करते हैं। बड़े महानगरों से लेकर अलग-अलग शहरों में हमारे लोग रह रहे हैं। ओलचिकी संथालों की मजबूत पहचान है। इसी से समाज के लोगों में एकता आ रही है। यह आयोजन भी उसी में से एक है। वहीं स्वागत भाषण के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी संथाली भाषा में कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान पंडित रघुनाथ मुर्मू को याद किया गया. वे महान संथाली लेखक, शिक्षक और विचारक थे।
उन्होंने कड़ी मेहनत से संथाली भाषा की ओलचिकी लिपि का आविष्कार किया था। राज्यपाल ने मंच पर मौजूद पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम से लोकसभा सांसद कालीपाड़ा सोरेन, अखिल भारतीय संथाली राईटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लक्ष्मण किस्कू और जाहेरथान कमेटी के अध्यक्ष सीआर मांझी समेत कार्यक्रम में मौजूद लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि यह आयोजन एक उत्सव नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की भाषा, संस्कृति और अस्मिता का सजीव उत्सव है।
उन्होंने राष्ट्रपति की जीवन यात्रा का जिक्र करते हुए उसे आज की लड़कियों के लिए प्रेरणाश्रोत बताया। उन्होंने कहा कि ये उत्सव हमारी लोक संक्कृति और लोक स्मृति और सामुदायिक एकता का उत्सव है जो पीढ़ियों से हमारी पहचान को जीवित रखे हुए है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने साल 2003 में 92वें संविधान संशोधन कर संथाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश समावेशी विकास की दिशा में अग्रसर है।
ओलचिकी के विद्वानों को किया गया सम्मानित -कार्यक्रम के दौरान ओलचिकी भाषा को आगे बढ़ाने में अलग अलग तरीके से योगदान देने वाले विद्वानों को सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शोभानाथ बेसरा, दमयंती बेसरा, मुचीराम हेंब्रम, भीम मुर्मू, रामदास मुर्मू, छोटराय बास्के, निरंजन हांसदा, बीबी सुंदरमण और सौरभ राय, शिवशंकर कांडयान, सी.आर.माझी को प्रशस्ति पत्र और मोमेंटो देकर सम्मानित किया। इससे पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का सेनारी हवाई अड्डा पर मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने जमशेदपुर पहुंचने पर स्वागत व अगुआई की। इसके बाद राष्ट्रपति करनडीह स्थित जाहेर थान में पूजा-अर्चना की और पंडित रघुनाथ मुर्मू के मूर्ति पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। राष्ट्रपति के साथ राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने संयुक्त रूप से ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह का विधिवत उद्घाटन किया। राष्ट्रपति के आगमन से करनडीह स्थित दिशोम जाहेर स्थान आज इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया।
करनडीह दिशोम जाहेर आगमन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का पोटका विधायक संजीव सरदार ने भी पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। मंच पर महामहिम के स्वागत का दृश्य बेहद भावुक और गौरवपूर्ण था। पटमदा के बांगुरडा स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की छात्राओं ने अपने शानदार ‘पाइपर बैंड’ के साथ महामहिम का अभिनंदन किया। छात्राओं ने बैंड की मधुर धुनों पर जन-गण-मन (राष्ट्रगान) बजाकर वातावरण को देशभक्ति और अनुशासन से ओत-प्रोत कर दिया।



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