ग्रामीण जंगल में वन देवी की पूजा कर पत्ता तोड़ने घूसते है, ताकि कोई जानवर आदि से नुकसान नहीं हो। इन्होंने बताया की प्रत्येक किलो सियाली पत्ता के एवज में जराईकेला के व्यापारी बीस रुपये, सौ बंडल बिड़ी पत्ता (एक बंडल में 42 पत्ता) पर नब्बे रुपये तथा साल पत्ता का सौ प्लेट बनाकर देने पर पंद्रह रुपये मिलता हैं। व्यापारी बीड़ी पत्ता की खरीद गांव में आकर हीं करते हैं तथा इन पत्तों को झारखंड-ओडिशा के अलावे मद्रास आदि राज्यों में वह भेजते हैं। ग्रामीणों ने बताया की मनोहरपुर से बस द्वारा छोटानागरा पंचायत के जंगलों में ये आते हैं। अर्थात आने-जाने का भाड़ा साठ रुपये देना पड़ता है।
पत्ता को सुखाना भी पड़ता है इससे कमाई कम होती है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार अथवा वन विभाग इन पत्तों के अलावे तमाम प्रकार के वन उत्पाद का सरकारी मुल्य निर्धारित कर प्रोसेसिंग प्लांट लगा सारंडा में खरीद-बिक्री केन्द्र खोल देती तो हमारा काम आसान हो जाता। हमें उचित मुल्य मिलता जिससे हम आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ते। जंगल के पत्तों के कारोबार में सैकड़ों परिवार जुड़े हैं जो अपने साथ खाने की टीफीन लाते हैं एंव सड़क किनारे स्थित पेंड़ों पर घने जंगलों में पत्ता तोड़ने चले जाते हैं।
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