गांव में अगर किसी का बुखार आ जाय, कोई बीमार पड़ जाय, किसी की उल्टी या पैखाना होने लगे, किसी का घाव नहीं सुख रहा हो, किसी बच्चा रोने लगे तो लोग समझते है की उसको जरूर किसी डायन लगी है। इसके लिए झाड़ फुंक और ओझा गुनी की जरूरत है। कभी कभी लोग ओझा गुनी के चक्कर में डॉक्टर के पास जाते नहीं है, इलाज कराते नहीं है। फल स्वरूप कभी कभी चिकित्सा के अभाव से मरीजों का मृत्यु भी हो जाता है। तब प्रचार किया जाता है कि डायन ने उसको खा गई।
तब संदेहास्पद नारियों के ऊपर अत्याचार किया जाता है, मारपीट किया जाता है। और यह सब काम आज भी गांव में बहुत सारे शिक्षित और अच्छे लोग भी करते है। अगर डायन के पास इतनी शक्ति है, जो लोगो की कलिजा खा सकती है तो उस सारे डायनों को देश के बॉडर में भेज दिया जाय, ताकि दुश्मनों की कलिजा खा सके, जहाँ पर देश की रक्षा के लिए सैनिक शहीद हो रहे है वे लोग भी बच जायेंगे।
बोलने का अर्थ है डायन कोई राक्षसी नहीं है, उसकी कोई शक्ति नहीं है, डायन एक कुप्रथा है, यह गुनी ओझा का एक काल्पनिक शब्द है, यह एक दुर्बल मन का उपज है इसलिए मानव समाज से यह कुप्रथा दूर होना चाहिए।डायन के नामपर नारियों के ऊपर अत्याचार बंद होना चाहिए। इसलिए गांव के सभी भाइयों और बहनों से मेरा निवेदन है कि घर में अगर कोई बीमार पड़े तो डॉक्टर के पास ले जाय, ओझा और गुनी के पास नहीं, डायन के चक्कर में किसी का जान न गवाएं। नारी कोई राक्षसी और डायन नहीं है, वह किसी की मा,पत्नी,बहन और बेटी है।
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