हाता। कार्तिक अमवस्या में दीपावली व कालीपूजा मनाई जाती है। इसके पीछे अनेक पौराणिक कथा और मान्यतायें है। इसी दीपावली के दिन प्रभु रामचन्द्र ने रावण को वध करके और सीता माता को लेकर भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या में लौटे थे। उसी खुशी में पूरे अयोध्या नगरी को आलोक सज्या में सजाया गया था। दीप जलाई थी, खुशी मनाई गई थी। उसी दिन से यह दीप उत्सव उर्फ दीपावली शुरू हुई जो आज हिन्दू समाज का एक महान संस्कृति और परंपरा हो गई है।
दीपावली के रात को माँ दुर्गा की उग्र रूप माँ काली की पूजा भी की जाती है। कालिका पुराण में वर्णित है उसी दिन माँ दुर्गा ने काली रूप धारण करके महिसासुर के सेनापति रक्तबीच का विनाश किया था। इसीलिए उसी दिन माँ काली को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा की जाती है। पहले पश्चिम बंगाल और बंगाली समुदाय के बीच काली पूजा काफी प्रचलित था, लेकिन अभी पूरे देश में हिन्दू धर्म के हर जाति के लोग माँ काली की पूजा करते हैं।
हमारे झारखंड में बांदना पर्व काफी लोकप्रिय है। दीपावली के रात में वांदना गीत गाया जाता है और गौ माताओं को जगाया जाता है। आधुनिक जीवन यापन के चलते गांव की यह संस्कृति खत्म होती जा रही है। मदोल और गीत काफी लोकप्रिय है।
अमवस्या के दिन माँ लक्ष्मी व गणेश की भी पूजा की जाती है। खासकर मारवाड़ी समुदाय के लोग और हिन्दू ब्यवसायी अपने अपने दुकान और घर में लक्ष्मी और गणेश की पूजा करते हैं। कालीपूजा के दूसरे दिन गौ माता की पूजा अर्चना की जाती है। गौ माताओं को नहलाया जाता है, शरीर में छाप दिया जाता है, पूजा आरती की जाती है और पीठा पुरी खिलाया जाता है। उसी दिन गोप समाज के लोग गिरिगोबर्धन की पूजा भी धूमधाम से करते हैं। द्वापर युग में एकबार इंद्र के साथ गोकुल में गोप समाज का भीषण युद्ध हुआ था।
भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिगोबर्धन पहाड़ को धारण करके गोप और गोपियों की रच्छा की थी। इसलिए इसी दिन गिरिगोबर्धन की पूजा की जाती है। कालीपूजा के तीसरे दिन भाई फोटा के रूप में मनाया जाता है। इसको यम द्वितीया और भाईदूज भी कहते हैं। यमराज के बहन यमुना ने इसी दिन यमराज को फोटा देकर उसकी दीर्घायु कामना की थी।
इसलिए इस यम द्वितीया के दिन बहन लोग अपने अपने भाई को फोटा देती है, नया कपड़ा देती है, मिठाई खिलाती है और यमराज से भाई की दीर्घायु और मंगल कामना करती हैं। बंगाली समुदाय में यह भाई फोटा काफी प्रचलित है। उसी दिन कोआदिवासी समुदाय के लोग गुरुखुटिया के रूप में मनाते हैं। एक खूंटी गाड़कर एक बैल को बांध दिया जाता है और मदोल बजाकर उसके साथ खेला किया जाता है। यह परंपरा गांव में आज भी प्रचलित है।
हमारा देश विचित्र है, हमारा हिन्दुधर्म भी बैचित्रमय है, बहु भाषा, बहु संस्कृति, बहु धर्म का समावेश है यह भारतीय समाज। इसलिए विविधता में एकता इस देश का पहचान है। आओ सभी मिलकर अपनी, पूजा उत्सव और पर्व को खुशी और आनंद के साथ मनाए साथ साथ देश की एकता, अखंडता और भाईचारे को कायम रखे।
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