Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template

पुरानी संस्कृति और परंपरा को छोड़ना और भूलना नहीं चाहिए : सुनील कुमार दे, Old culture and tradition should not be abandoned and forgotten: Sunil Kumar De


आज भी नुआग्राम में मकर कीर्तन करने की परंपरा जीवित है

पौष संक्रांति दिने शोचिर नंदन,

गंगा स्नाने चोलीलेन लोए भक्त गण,,,

हाता। जैसे कि मान्यता है पौष संक्रांति के दिन भगीरथ माँ गंगा को मृत्युलोक में तपस्या कर के लाये थे उनके अभिशप्त सागर वंश को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा सागर के कपिल मुनि के आश्रम में। इसलिए माँ गंगा का और एक नाम भागीरथी भी है। माँ गंगा का स्पर्श पाकर सागर वंश का उद्धार हुआ था इसलिए पौष संक्रांति में गंगा स्नान करने का इतना महत्व है।


सभी लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते हैं इसलिए गाँव के लोग कोई नदी अथवा तालाब में जाकर नहाते है, नए बस्त्र पहनते हैं और मकर कीर्तन करते हुए घर आते हैं। यह धार्मिक परंपरा आज भी पोटका के नुआग्राम में जीवित हैं। 15 जनवरी 2024 को सुबह 11 बजे गांव के कीर्तन मंडली सुनील कुमार दे के नेतृत्व में गांव के तालाब से मकर कीर्तन करते हुए आये।साहित्यकार और शिल्पी सुनील कुमार दे ने मकर कीर्तन में कहा।

पौष संक्रांति दिने शोचिर नंदन,

गंगा स्नाने चोलीलेन लोए भक्तगण।

चारि दिके भक्तगण हरिध्वनी कोरे,

एसे उपनीत होलो जाह्नबीर तीरे।

अर्थात पौष संक्रांति दिन में चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तजनों के साथ गंगा स्नान हेतु हरिनाम करते हुए माँ गंगा के पास पहुचे। मकर कीर्तन करने के पीछे यही मान्यता है। नुआग्राम के कीर्तन मंडली मकर कीर्तन करते हुए पूरा गांव परिक्रमा किया। अंत मे शिव मंदिर में प्रदक्षिण करते हुए लक्ष्मी मंदिर में कीर्तन का समापन किया। कीर्तन के पश्चात मकर चावल और तिल लड्ड़ू प्रसाद के रूप में वितरण किया गया। कीर्तन मंडली में सुनील कुमार दे के अलावे शंकर चंद्र गोप, भास्कर चंद्र दे, स्वपन दे, तरुण दे, तपन दे, महादेव दे, प्रशांत दे, शैलेन्द्र प्रामाणिक, प्रदीप दे,अरुण पाल, शिशिर कर्जी, अर्जुन मुदी आदि सहयोग दिया। इस अवसर पर सुनील कुमार दे ने कहा,,ऐसी तरह की परंपरा झारखंड के बहुत सारे गांव में आज भी जीवित है और रखना भी चाहिए, क्योंकि किसी भी जाति का पहचान अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा से होती है। इसलिए आधुनिक जीवन के नाम पर यह पुरानी संस्कृति और परंपरा को छोड़ना अथवा भूलना नहीं चाहिए।।

No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template