Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal. अब भारतीय व्यापारी सिखाएंगे तुर्की और अजरबैजान को सबक, Now Indian businessmen will teach a lesson to Türkiye and Azerbaijan


Upgrade Jharkhand News  पाकिस्तान की ओर से ड्रोन हमले में सक्रिय भूमिका निभाकर तुर्की ने भारत के अहसानों का बदला बेवफाई और अहसान फरामोशी से चुकाया है। हाल ही में भारत सरकार के आपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्की ने पाक को ड्रोन की खेप देकर जिस तरह पाकिस्तान का साथ दिया, इससे समूचा भारतीय समाज उद्वेलित हुआ है। 14 वीं शताब्दी से भारत और तुर्की के बीच दोस्ताना ताल्लुकात रहे हैं। तुर्की में भूकंप की आपदा के समय भारत ने सबसे आगे बढ़ कर तुर्की की सहायता की लेकिन तुर्की हद दर्जे का बेईमान और अहसान फरामोश निकला। आपरेशन सिंदूर के जबाव में तुर्की और चीन निर्मित ड्रोनों का भरपूर इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए किया लेकिन भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने उन सभी ड्रोनों और मिसाइलों की हवा निकाल दी। अभी भी पाकिस्तान द्वारा दागी गईं चीनी और तुर्की की मिसाइलों और ड्रोनों के नष्ट टुकड़े भारत में मौजूद हैं। दावा यह भी है कि तुर्की के प्रशिक्षित लोगों ने पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिए भारत पर हमला किया और दो तुर्की भारत की कार्रवाई में मारे भी गए। हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो गया है लेकिन चीन और तुर्की के अलावा एक और देश अजरबैजान का चेहरा भी बेनकाब हो गया है, जिसने मजहबी भाईजान बनकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। इन देशों की अर्थव्यवस्था में भारत का बड़ा योगदान है। चीन जहां भारत में अपना सस्ता माल बेचकर बड़ी कमाई करता है, वहीं तुर्की और अजरबैजान भारतीय पर्यटकों से भारीभरकम माल ऐंठते  है। यानी ये देश कमाई भारत से करते हैं लेकिन उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर रहे हैं। ऐसे में भारतीयों ने अब इनका विरोध करना शुरू कर दिया है। 



व्यापारियों के संगठन, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स(कैट) ने भी भारतीय व्यापारियों और नागरिकों से मौजूदा शत्रुता के बीच पाकिस्तान का खुला समर्थन करने के जवाब में तुर्की और अजरबैजान की यात्रा का पूरी तरह से बहिष्कार करने का आह्वान किया है। पाकिस्तान का साथ देना तुर्की को भारी पड़ता नजर आ रहा है। भारत में बायकॉट तुर्किए की मुहिम तेज हो गई है और इसका असर भी दिखने लगा है। एक ओर जहां व्यापारियों ने तुर्की सेव का बहिष्कार शुरू किया है, तो ट्रैवल प्लेटफॉर्मों ने तुर्की, अजरबैजान की यात्रा न करने की अपील की है।  भारत के जानेमाने विश्वविद्यालय जेएनयू  ने भी तुर्की के साथ शैक्षिक सहयोग बंद करने का फैसला किया है। 2024 में तुर्की में करीब 62.2 मिलियन विदेशी पर्यटक आए, जिनमें से करीब तीन लाख पर्यटक अकेले भारत से आए। यह 2023 की तुलना में भारतीय पर्यटकों में 20.7 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। व्यापारिक निकाय ने कहा कि तुर्की का कुल पर्यटन राजस्व 61.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें प्रत्येक भारतीय पर्यटक औसतन 972 अमेरिकी डॉलर खर्च करता है, जो कुल अनुमानित भारतीय व्यय 291.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। अगर भारतीय पर्यटक तुर्की का बहिष्कार करते हैं, तो तुर्की को लगभग 291.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, भारतीय शादियों, कॉर्पोरेट कार्यक्रमों और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के रद्द होने से अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक नुकसान और भी अधिक होगा। तुर्की ने भारत के खिलाफ अपना रंग तब दिखाया है, जब दो साल पहले ही वहां विनाशकारी भूकंप के दौरान भारत ने दिल खोलकर उसकी मदद की थी। तुर्की की जीडीपी में पर्यटन का योगदान 12 फीसदी है।



अज़रबैजान के बारे में भी आंकड़े बता रहे हैं  कि 2024 में देश में लगभग 2.6 मिलियन विदेशी पर्यटक आए, जिनमें से लगभग ढ़ाई लाख भारतीय थे। एक भारतीय पर्यटक द्वारा औसत खर्च  लगभग 1,276 अमेरिकी डॉलर है, जिससे कुल भारतीय योगदान लगभग 308.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।  इसलिए भारतीय पर्यटकों द्वारा बहिष्कार से इस धनराशि का सीधा नुकसान हो सकता है। चूंकि भारतीय यात्री मुख्य रूप से छुट्टियों, शादियों, मनोरंजन और साहसिक गतिविधियों के लिए अज़रबैजान जाते हैं, इसलिए बड़े पैमाने पर गिरावट इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय आर्थिक मंदी का कारण बन सकती है।  यह आर्थिक दबाव तुर्की और अज़रबैजान दोनों को भारत के प्रति अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप सांस्कृतिक आदान-प्रदान में कमी आएगी और तुर्की और अजरबैजान दोनों देशों में स्थानीय व्यवसायों जैसे होटल, रेस्तरां, टूर ऑपरेटर और अन्य पर्यटन-संबंधी सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अज़रबैजान की जीडीपी में पर्यटन का योगदान 10 फीसदी है।



भारत में जबरदस्‍त गुस्‍सा देखने को मिल रहा है और बायकॉट तुर्किए मुहिम तेज हो गई है। इसका असर भी दिखा है, जहां व्यापारियों ने तुर्की से सेब खरीदना बंद कर दिया है, तो काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर तुर्की के लिए कई ट्रैवल एजेंसियों ने भी ट्रैवल पैकेज रद्द कर दिए हैं। ट्रैवल प्लेटफॉर्म ईजीमायट्रिप ने देश पहले व्यापार बाद में का नारा बुलंद किया है और यात्रियों को पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देशों की यात्रा न करने की सलाह दी है। इसी तरह उदयपुर के मार्बल व्यापारियों ने भी तुर्की से मार्बल व्यापार न करने का निर्णय लिया है। गाजियाबाद में भी इंडियन बुलियन ज्वेलर्स एसोसिएशन (IBJA) और गाजियाबाद सर्राफा एसोसिएशन ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे भारत में तुर्की निर्मित सोने की ज्वेलरी के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। 



भारतीय मार्केट में मौजूद तुर्किए के बड़े-बड़े ब्रांड्स की लिस्ट लंबी है। फर्नीचर से लेकर पर्सनल केयर तक, होम अप्लायंस से लेकर सेब तक बेचे जा रहे हैं। तुर्की कालीन, तुर्किए फर्नीचर, टर्किश चीनी मिट्टी की चीजें, बुना हुआ कपड़ा, सिरेमिक टाइल्स, मार्बल,चेरी, ड्राय फ्रूट्स, ऑलिव ऑयल के लिए भारत एक बड़ा बाजार है। जिस पर बेहद बुरा असर पड़ने की उम्मीद है। भारत और तुर्की के बीच वर्षों से चल रहे व्यापारिक और रणनीतिक संबंध अब खात्मे की ओर चल पड़े हैं।'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद केंद्र सरकार ने तुर्की की कंपनियों से जुड़े सभी समझौते और परियोजनाओं की समीक्षा शुरू कर दी है। भारत में निर्माण, मैन्युफैक्चरिंग, एविएशन, मेट्रो रेल और आईटी जैसे क्षेत्रों में सक्रिय तुर्की की कंपनियों की भूमिका को दोबारा परखा जा रहा है। यह कदम तुर्की के कश्मीर मुद्दे पर बार-बार टिप्पणी और पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती निकटता के मद्देनजर उठाया गया है। जाहिर है आगामी दिनों मेँ तुर्की और अजरबैजान के बहिष्कार से इन दोनों ही देशों को गंभीर आर्थिक नुकसान होगा और यही एक अहसान फरामोश मुल्क को सजा देने की शुरुआत है। मनोज कुमार अग्रवाल



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template