Upgrade Jharkhand News. देश के अमूमन हर शहर में ई-रिक्शा ग्रीन परिवहन के नाम पर उतारे गये थे। ये ई रिक्शे उन लोगों को थमाए गये थे जो या तो तांगा, इक्का चलाते थे या हाथ रिक्शा। खटारा और धुआं उगलने वाले टेंपो का विकल्प भी समझे गये थे ये ई रिक्शे। बेआवाज ये ई रिक्शे शुरू में तो सभी को अच्छे लगे लेकिन अब यही ई रिक्शे देश के घरेलू परिवहन के लिए अराजक हो गये हैं। पर्यावरण हितैषी परिवहन के नाम पर प्रयोग में लाए जा रहे ये ई रिक्शे यातायात को बद से बदतर बना रहे हैं। इनका न ढंग से पंजीयन हुआ, न चालकों का प्रशिक्षण, न इनके लिए स्टापेज बने और न मार्गों का निर्धारण किया गया, फलस्वरुप इन ई रिक्शा वालों को जहां सवारी ने हाथ दिया, वहीं रिक्शा रोक दिया, चाहे पीछे से आ रहे वाहन चालक दुर्घटना का शिकार हो जाएं। महानगरों और छोटे शहरों से लेकर कस्बों तक भले ही दो पहिया वाहन चलाने की जगह न हो, लेकिन इन्हें अपनी जगह पर वाहन खड़े करने की आजादी है। ये न यातायात के नियम जानते हैं न इनके चालकों के पास कोई नागरिकता बोध है। भले ही चाहे इनके कारण वाहनों की कतार लग जाए।
लगभग हर शहर में प्रशासन ने इन पर सख्ती कर ई रिक्शों के लिए रूट तय किए, रंग लगाकर पहचान देने की भी कोशिश की। ई रिक्शों को पालियों में भी चलवाने का प्रयास किया, लेकिन सब अकारथ गया। ई रिक्शा संचालकों के विरोध के बाद ये तमाम सख्ती हवा हो गई। इतना ही नहीं प्रशासन, यातायात पुलिस व आरटीओ भी इनके आगे बेबस साबित हो रहे हैं । अब सुविधा और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए लाये गये ये ई रिक्शे सिरदर्द बन गये हैं और खामियाजा आम जनता भुगत रही है। भारत में ई-रिक्शा की संख्या लाखों में हो सकती है, जिसमें पंजीकृत और गैर पंजीकृत दोनों शामिल हैं। 2022-23 तक के आंकड़ों के आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कम से कम 3 लाख पंजीकृत ई-रिक्शा हैं, और गैर-पंजीकृत ई-रिक्शा की संख्या कहीं अधिक हो सकती है। बीते दो वर्षों में तो इनकी संख्या अनुमान से भी कहीं अधिक बढ़ चुकी है। शहरों में पिछले कई वर्षों से वन-वे घोषित मार्गों पर ई-रिक्शा वाले बिना रोक टोक, बेधड़क दौड़ते हैं। यातायात पुलिस एवं पुलिस खड़ी रहती हैं। जहां पहले तांगों, टेम्पो के कारण आम लोगों को परेशानी होती थी, अब इसकी जगह ई-रिक्शा ने ले ली है। हर शहर में ई-रिक्शा के अघोषित अस्थायी स्टैंड बन गये है। इससे बार-बार ट्रैफिक जाम होता रहता है। पैदल निकलने तक की जगह नहीं रहती है। ई रिक्शा वाले परम स्वतंत्र हैं। जहां से इच्छा हुई, वहीं से सवारी बैठा ली। कोई रोकने वाला नहीं है। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, घनी आबादी वाले क्षेत्र इनके अड्डे बनते जा रहे है।
सवाल ये है कि इन ई रिक्शा चालकों की अराजकता का इलाज क्या है? मैंने दुनिया के अनेक गरीब, अमीर देश देखे हैं लेकिन वहाँ ई रिक्शा यदि हैं भी तो अराजक नहीं हैं। वे नियमों का पालन करते हैं, सभ्य हैं और उनमें भरपूर नागरिकता बोध भी है, लेकिन भारत में तो ई रिक्शा समस्या का दूसरा नाम बन गये हैं। मुझे तो ई रिक्शा की धींगामुश्ती देखकर अपने पारंपरिक तांगे वाले ज्यादा बेहतर लगते हैं। हकीकत ये है कि ई रिक्शों की बाढ़ से पर्यावरण सुधरने के बजाय तेजी से बिगड़ रहा है। पर्यावरण के लिए ई रिक्शों का ई कचरा भी आने वाले दिनों में एक गंभीर समस्या होने वाला है, इसलिए इनका हल खोजा जाना चाहिए। राकेश अचल
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