Upgrade Jharkhand News. सब है पीतल यहाँ कोई कंचन नहीं, धूल ही धूल है आज चन्दन नहीं, देश की सबको चिंता बहुत है मगर, पर दिशा कुछ नहीं कोई चिंतन नहीं। ये पंक्तियाँ यूँ तो बरसों पहले लिखी गई, मगर आज भी देश की दशा का चित्रण करने में समर्थ हैं, पहलगाम में पर्यटकों का नाम और धर्म पूछकर किए गए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत पाक समर्थित आतंकी अड्डों को तबाह किया, जिस पर विश्व के अधिकांश देशों ने भारत के शौर्य और आतंकवाद विरोधी कार्यवाही का समर्थन किया। विडंबना यह रही कि अपने ही देश में कुछ राजनीतिक दलों तथा सत्ता विरोधी तत्वों को ऑपरेशन सिंदूर की सफलता रास नहीं आई। वे ऑपरेशन सिंदूर में कमियां खंगाल कर सत्ता को घेरने में ही जुटे रहे।
किसी भी राष्ट्र को सबल बनाने के लिए राष्ट्र के प्रति जिस समर्पित भाव तथा विश्व में राष्ट्र को सुदृढ़ दर्शाने के लिए आपसी मतभेद व संकीर्ण राजनीति त्याग कर जिस एकजुटता का परिचय विश्व को देना चाहिए था, विपक्ष उसमें असफल रहा। उसकी सारी शक्ति केवल भारत के शौर्य एवं भारत की सत्ता को बदनाम करने तक ही सीमित रही। सबसे बड़ी विडंबना है कि भारतीय विपक्ष को न तो अपने सैन्य अधिकारियों पर विश्वास है न ही नेतृत्व पर और न ही नागरिकों पर। कारण स्पष्ट है कि जन विश्वास खो चुका विपक्ष स्वयं के अस्तित्व पर आए संकट से ही नहीं उबर पा रहा है। उसे विदेशी मीडिया व विदेशी नेताओं के अतार्किक बयानों को आधार बनाकर सत्ता को घेरने के प्रयास से ही फुर्सत नहीं मिलती। बहरहाल ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने विश्व भर को यह संदेश दे दिया कि आतंकियों के दिन लद गए हैं। विचारणीय विषय यह है कि भारत की सैन्य क्षमता में बढ़ोत्तरी के उपरांत भी आखिर कब तक भारत का विपक्ष भारत की सैन्य क्षमता को कम आंकता रहेगा ? ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकियों के शिविर मात्र बाईस मिनिट में ध्वस्त किए गए तथा आतंकियों व उनके आकाओं की आँखों से नींद और दिन का चैन गायब कर दिया गया, तिस पर भी अपनी राजनीतिक जमीन खो चुके राजनीतिक दलों में स्वाभिमान का भाव जागृत नहीं हुआ।
यदि विपक्ष राष्ट्र के प्रति समर्पित होता, तो सड़क से संसद तक ऑपरेशन सिंदूर पर कोई सवाल नहीं उठाता। आतंकियों के प्रति कठोर कार्रवाई को युद्ध का नाम देकर युद्ध विराम के नाम पर सत्ता को कायर न बताता। जबकि विपक्ष बखूबी जानता है कि आतंकी अड्डों को नष्ट करने और आतंकियों के सरपरस्तों के छद्म हमलों को कभी युद्ध की संज्ञा नहीं दी जा सकती, सो जब युद्ध हुआ ही नहीं, तो युद्ध विराम का प्रश्न ही कहाँ उत्पन्न होता है। बहरहाल सड़क से लेकर संसद तक ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर विपक्ष जिस प्रकार सत्ता को घेरना चाहता था, उसमें विपक्ष पूरी तरह विफल हो चुका है। आतंकियों के पहलगाम में प्रवेश, आतंकियों की पहचान, आतंकी अड्डों को ध्वस्त करने में भारतीय सैन्य उपकरणों की तबाही जैसे अपनी सत्ता पर प्रश्न खड़े करने वाला विपक्ष केवल विरोध के कारण ढूंढता है।
पहलगाम हमले का सरगना सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन महादेव के अंतर्गत अन्य आतंकियों सहित मारा गया, विपक्ष इस पर सवाल कर सकता है, कि जब संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस हो रही थी, आतंकी को उसी समय क्यों मारा ? देश में मजबूत विपक्ष का होना अनिवार्य है, लेकिन अपने देश की सेनाओं, सैन्य उपकरणों पर सवाल खड़े करके भारत से शत्रुता रखने वाले देशों की नजर में भारत को कमजोर सिद्ध करने का प्रयास करने वाला विपक्ष स्वयं सवालों के घेरे में खड़ा है, कि देश का विपक्ष राष्ट्र के प्रति तथा भारतीय सेना के प्रति निष्ठावान है भी या नहीं ? यदि निष्ठावान है तो राष्ट्र विरोधी सियासत का औचित्य क्या है ? डॉ.सुधाकर आशावादी
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