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Bhopal दृष्टिकोण - मतदाता पुनरीक्षण पर राजनीति के निहितार्थ Viewpoint - Implications of Politics on Voter Revision


Upgrade Jharkhand News. किसी भी राष्ट्र की समृद्धि सभी नागरिकों की राष्ट्र के प्रति समर्पित भावना से ही संभव है तथा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितनी उपयोगिता सत्ता पक्ष की है, उससे अधिक उपयोगिता सकारात्मक विपक्ष की है, जो पग पग पर सत्ता को जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध घेरता रहे, बिना किसी तार्किक आधार के मात्र विरोध के नाम पर विरोध की राजनीति न करे। विडम्बना है कि भारत में विपक्ष केवल नकारात्मक दिशा में गतिशील है। विपक्ष को भारत की एकता व अखंडता से जुड़े मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रह गया है। यदि उसे देश की संवैधानिक संस्थाओं पर तनिक सा भी विश्वास होता, तो वह संकीर्ण  चिंतन एवं मात्र राजनीतिक कारणों से जनहितकारी नीतियों का विरोध न करता और न ही लोकतंत्र के प्रमुख घटक मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के विरुद्ध अनर्गल और अतार्किक बयानबाज़ी करता। विधान सभाओं से लेकर संसद तक मतदाता सूची के परीक्षण पर बवाल मचाता।



विपक्ष के सम्मुख एक बड़ी चुनौती अपना अस्तित्व बचाने की है। अनेक चुनाव परिणामों से स्पष्ट हो चुका है, कि देश की अधिकांश जनता विपक्ष को नकार चुकी है। विपक्ष इसे अपनी नैतिक हार न मान कर भी बेशर्मी से अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम के मत्थे मढ़ता है, कभी चुनाव आयोग पर। ऐसा करते समय विपक्ष भूल जाता है कि वही चुनाव आयोग और वही ईवीएम उन राज्यों में भी कार्य कर रहा है, जहां विपक्ष से जुड़े राजनीतिक दलों का सत्ता पर कब्जा है। मतदाता पुनरीक्षण पर कांग्रेस, राजद, सपा, तृणमूल कांग्रेस सहित जो जो दल सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्हें देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार ने करारा जवाब दिया है तथा उनसे पूछा है कि पारदर्शी प्रक्रिया से तैयार की जा रही मतदाता सूची क्या मजबूत चुनाव और मजबूत लोकतंत्र की नींव नही है ? क्या जिन लोगों की मौत हो चुकी है, उन्हें वोट डालने दिया जाए ? क्या अपात्र लोगों को मताधिकार मिलना चाहिए ? कड़वा सच यही है, कि जब जब लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार के प्रयास किए जाते हैं, तब तब अराजक तत्व और उनके समर्थक राजनीतिक दल सुधारों का विरोध करने के लिए सड़क से लेकर संसद तक विरोध पर उतर आते हैं तथा व्यवस्था के सकारात्मक सुधार को स्वीकार नहीं कर पाते । कौन नहीं जानता कि अव्यवस्था का समर्थन वही करते हैं, जिन्हें प्रचलित अव्यवस्था से कोई लाभ प्राप्त हो रहा हो। विचारणीय प्रश्न यह भी है, कि क्या एक नागरिक को एक से अधिक मताधिकार प्रयोग करने का अधिकार मिलना चाहिए।



जिन नागरिकों ने अपने स्थाई निवास और अपने कार्यस्थल पर अलग अलग मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा रखा हो, क्या उन्हें इस जालसाज़ी की सजा नहीं मिलनी चाहिए ? क्या किसी भी मतदाता को दो स्थानों पर मतदान की आज़ादी मिलनी चाहिए ? क्या मतदाता सूची में पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए ? गंभीर चिंतन का विषय यही है कि मतदाता सूचियों में गड़बड़ का आरोप लगाने वाले ही यदि मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर सवाल उठाएँगे, तो सवाल उठने वालों की नीयत पर भी सवाल खड़े होंगे। केवल एक ही प्रदेश की मतदाता सूची का प्रश्न नहीं है। सवाल पूरे देश में चुनाव सुधारों का है, जिसके लिए निष्पक्ष मतदाता सूची देश की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। जहां तक संभव हो, विभिन्न चुनावों के लिए पृथक पृथक मतदाता सूची जारी करने से अच्छा है कि राष्ट्रीय स्तर पर केवल एक मतदाता सूची बने। हर चुनाव से पहले उसकी वैधता व विश्वसनीयता का परीक्षण हो, ताकि किसी भी राजनीतिक दल को मतदाता सूची पर सियासत करके जनता को भ्रमित करने का अवसर ही न मिल सके। डॉ. सुधाकर आशावादी



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