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Bhopal आत्मोन्नति और जीवन-जागरण का महापर्व A grand festival of self-improvement and life-awakening

 


Upgrade Jharkhand News. जैन धर्म में पर्यूषण महापर्व का अपना विशेष महत्व है। यह केवल कोई धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरने, आत्म-मंथन और आत्म-शुद्धि का अनोखा पर्व है। जैन संस्कृति ने सदियों से इस पर्व को आत्मकल्याण, तप और साधना का महान माध्यम बनाया है। ‘पर्यूषण’ का शाब्दिक अर्थ है – स्वयं के भीतर ठहरना, आत्मा में निवास करना, आत्मा के समीप होना। इस वर्ष यह महान आत्म-शुद्धि का पर्व 20 से 27 अगस्त  तक मनाया जा रहा है। इन आठ दिनों में प्रत्येक जैन अनुयायी अपने तन-मन को साधना से परिपूर्ण करता है। मन को इतना स्वच्छ करता है कि बीते हुए अपराध मिट जाएँ और भविष्य में कोई गलत कदम न उठे। यह पर्व केवल किसी विशेष मौसम का नहीं, बल्कि जीवन को शुद्ध करने वाला वातावरण निर्मित करता है। इस दृष्टि से यह केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि जीवनोन्नत पर्व है। यह मात्र जैनों का पर्व नहीं, बल्कि सार्वभौमिक पर्व है। सम्पूर्ण मानवता के लिए यह परम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना कर जीवन को शांत, स्वस्थ और अहिंसामय बनाया जाता है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा उत्सव है, जिसमें आत्मा में लीन होकर मनुष्य आत्माभिमुख बनता है और अलौकिक आध्यात्मिक आनंद के शिखर की ओर, मोक्ष की ओर बढ़ने का ईमानदार प्रयास करता है।



जैन धर्म की त्यागप्रधान संस्कृति में पर्यूषण का विशिष्ट और अद्वितीय आध्यात्मिक महत्व है। जप, तप, ध्यान, आराधना और चिंतन के द्वारा जीवन शुद्ध होता है। यह अंतरात्मा की उपासना का पर्व है - आत्मशुद्धि का पर्व, प्रमाद-त्याग का पर्व। वास्तव में, पर्यूषण ऐसा प्रभात है जो हमें निद्रा से जागरण की ओर ले जाता है। यह हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले चलता है। इसलिए आवश्यक है कि प्रमाद की निद्रा को त्याग कर इन आठ दिनों में विशेष तप, जप और अध्ययन में लीन होकर स्वयं को सुगंधित और आत्मलीन बनाएँ ताकि जीवन सार्थक और सफल बन सके। पर्यूषण का एक अर्थ है "कर्मों का क्षय",केवल जब कर्म-शत्रु नष्ट होंगे तभी आत्मा अपने स्वरूप में स्थित हो सकेगी। इसलिए यह पर्यूषण आत्मा को आत्मस्थित होने की प्रेरणा देता है। विजय संस्कार



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