Upgrade Jharkhand News. संसार में अनेक ऐसे सनकी राजा हुए हैं, जिन्होंने मनमाने निर्णय लेकर प्रजा को खूब तंग किया है। किसी ने अपनी सनक में चमड़े के सिक्के चलाकर राज्य की अर्थ व्यवस्था चलाई, तो किसी ने अपनी सनक में अपने राज्यों को अकारण युद्ध में झोंक दिया। इसका एक अर्थ यही निकलता है कि सनक तानाशाही का प्रतिनिधित्व करती है। सनक विवेक हर लेती है। किसी भी सनकी राजा के चाल, चरित्र और चेहरे को समझना सरल नही होता। यूँ तो सभी के सभी दिन सदा एक से नहीं रहते तथा कर्म प्रधान जीवन चर्या में “सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर, जिस दिन सोया देर तक भूखा रहा फकीर” जैसी सीख दी जाती है। ऐसे में कोई भी शक्तिशाली देश हो या शक्ति सम्पन्न व्यक्ति, कभी उसे जीवन में अच्छे दिनों का भान होता है तो कभी दुर्दिनों का। वैभवशाली जीवन जीने वाला भी कभी कभी अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाता है। मैंने अनेक ऐसे बलशाली पहलवानों को देखा है, जो शक्ति दंभ में अपने सामने हर व्यक्ति को कमजोर और बौना समझते थे, फिर एक समय ऐसा भी आया, कि जब पहलवान को गली के दुर्बल लड़के से भी डरते देखा। तब समझ में आया कि शक्ति का दंभ व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति समाप्त कर देता है। यह स्थिति सभी पर लागू होती है। सत्ता एवं शक्ति के नशे में चूर कोई शासक यदि स्वयं को चक्रवर्ती एवं भूमंडल का सम्राट समझने लगे, तो उसकी अल्प बुद्धि पर तरस आना स्वाभाविक होता ही है।
आधुनिक समय में भी एक सामान्य व्यापारी को एक समृद्ध राज्य की राजगद्दी क्या मिली, वह अपने आपको चक्रवर्ती सम्राट समझने लगा। फिर क्या था, उसने अन्य राज्यों को धमकाना शुरू कर दिया, कि या तो मेरे राज्य से व्यापार करो, मेरी अधीनता स्वीकार करो, अन्यथा मेरे कोप के भागी बनो। कुछ राज्य उसकी गीदड़ भभकी में आ गए, कुछ ने उसके विरुद्ध कठोर तेवर दिखाने शुरू कर दिए । एक ने कहा - “तुम अपने आप को चक्रवर्ती सम्राट समझते हो, हमें कोई आपत्ति नही है, मगर दूसरे के घर में झांकना बंद करो।” दूसरे ने कहा - “स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं, हम किसी के ग़ुलाम नही हैं, जो किसी भी सनकी राजा की सनक को स्वीकार करें।” किसी ने सनकी राजा को खरी खोटी सुनाई तथा कहा-“अपनी दादागिरी दिखाना बंद करो, सत्ता मद में इतने भी चूर मत रहो, कि अपनी मर्यादा ही भूल जाओ। दादागिरी लम्बे समय तक नहीं चलती। जब सत्ता से उतर जाओगे तो कोई बात करना भी पसंद नही करेगा।”
सनकी राजा ठहरे सनकी, जो सनक एक बार दिमाग़ के घोड़े पर सवार हो जाए तो उतरे कैसे। किसी को अपना मित्र कह कर पीठ में छुरा भोंकने से भी परहेज़ क्यों करे। वैसे भी राज काज और सियासत में कोई किसी का सगा नही होता। राज काज की सीख में यह पहला अध्याय होता है, जिसे राजा और वज़ीर पढ़ते ही हैं। राज्य का संचालन करने के लिए न काहू से दोस्ती न काहू से बैर की नीति अपनानी जरुरी होती है। तिस पर भी प्रतिस्पर्धा के युग में कोई किसी पर विश्वास करे, सनकी राजा को उसकी सनक का समुचित उत्तर न दे, तो इसमें दोष सनकी राजा का नही, बल्कि सनकी राजा की सनक को न समझने वालों का ही माना जाएगा। सुधाकर आशावादी
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