Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal 'दिवास्वप्न' के आलोक में वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य Current educational scenario in the light of 'daydreaming'

 


Upgrade Jharkhand News.  शिक्षा साहित्य में ऐसी पुस्तकें बहुत कम हैं जो शिक्षक, विद्यार्थी, विद्यालय एवं समुदाय के पारस्परिक सम्बन्धों का विवेचन करते हुए बच्चों को समझने और उन्हें ज्ञानार्जन के सहज अवसर उपलब्ध कराने की बात करती हों, गिजुभाई बधेका कृत 'दिवास्वप्न' एक ऐसी ही प्रेरक पुस्तक है। अफ्रीका से वर्ष 1909 में भारत वापस आकर गिजुभाई कानून की पढ़ाई पूरी कर वकालत के काम में लग गये। अपने पुत्र की शिक्षा के लिए जब उचित विद्यालय चाहा तो तमाम कोशिश और खोजबीन के बाद भी आनंदमय माहौल वाला विद्यालय न मिल सका। सभी विद्यालयों में बच्चे डर-भय की छाँव और पिटाई के साथ पढ़ने को विवश थे। तब आपने विश्व की प्रचलित शिक्षण पद्धतियों का अध्ययन आरम्भ किया और मारिया मोंटेसरी के शैक्षिक विचारों से प्रभावित हुए और उस विचार आधारित विद्यालय खोलने की योजना बनाई। एक ऐसा विद्यालय जहाँ बच्चों को अपनापन मिले, जहाँ बच्चों के मस्तिष्क, हृदय और हाथ के हुनर को तरासा जाए। 



गिजुभाई ने 1918 में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर वर्ष  दक्षिणामूर्ति बालमंदिर की स्थापना की और शिक्षक के रूप में काम करते हुए जो अनुभव अर्जित किया है, उसे ही 'दिवास्वप्न' के रूप में लोक को सौंप दिया। आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व गिजुभाई विद्यालय की छवि एक आनंदघर के रूप में देखते थे और तब वह न केवल कल्पना करते हैं बल्कि तमाम झंझावात, रुकावट, चुनौतियों, बाधाओं से लड़ते-जूझते अपने प्रयोग सिद्ध कर शिक्षा की एक आनंदमय शिक्षण पद्धति का स्वरूप विकसित करते हैं। गिजुभाई जब अपने शैक्षिक प्रयोग करने की अनुमति हेतु अधिकारी से मिलते हैं तो अधिकारी का वह जवाब आज भी ज्यों का त्यों हवा में तैर रहा है। वह कहते हैं,  "देखो, जैसे चाहो वैसे प्रयोग करने की स्वतंत्रता तो तुम्हें है ही लेकिन यह भी ध्यान में रखना कि बारहवें महीने में परीक्षा सामने आ खड़ी होगी और तुम्हारा काम परीक्षा के परिणामों से मापा जाएगा।" आश्चर्य है और कसक भी कि आज भी हम इस अंक आधारित परीक्षा प्रणाली से मुक्त नहीं हो पाए हैं। यह परीक्षा प्रणाली जो बच्चे के मौलिक एवं स्वतंत्र चिंतन कल्पना करने और उसके अनुभव से अर्जित ज्ञान की अभिव्यक्ति में एक सबसे बड़ी बाधा के रूप में उपस्थित है। परीक्षा में उसकी उत्तरपुस्तिका का मूल्यांकन पाठ पर आधारित तथ्यों और संदर्भ पर ही निर्भर है, बच्चे की समझ आधारित उत्तरों पर नहीं। यह परीक्षा प्रणाली बच्चों को रटन्त पद्धति स्वीकारने को विवश करती है न कि उनमें वैज्ञानिक चेतना-चिंतन का विकास करने, तर्क, अनुमान, अवलोकन ,विश्लेषण करने और निष्कर्ष निकालने की क्षमता वृद्धि का अवसर देती है। 



बच्चे अनंत ऊर्जा से लबरेज होते हैं। एक शिक्षक को बच्चों के साथ काम करते हुए न केवल स्वयं को ऊर्जावान एवं धैर्यवान बनाए रखना होता है बल्कि सभी बच्चों के साथ मिलकर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को भी गति देनी होती है। ऐसी स्थिति में प्रायः पूर्व नियोजित योजनाएँ ध्वस्त हो जाती हैं और शिक्षक को तत्काल नवीन गतिविधियाँ खोजना आवश्यक हो जाती हैं। गिजुभाई लिखते हैं,  "मेरे ये नोट्स बेकार हैं। घर में बैठे-बैठे अटकलें लगाना और कल्पना में पढ़ा लेना सहज था लेकिन यह तो लोहे के चने चबाने जैसा है।" छुट्टी बच्चों को आनंद प्रदान करती है। छुट्टी की घंटी बजते ही कक्षाओं में कैद खुशबू जैसे मुक्त हो जाने का उत्सव मनाती हो। ऐसा उल्लास और प्रसन्नता बच्चों के चेहरे पर देखा जा सकता है जैसे वे कष्ट एवं यातना के पलों से मुक्त हो गये हों। तमाम शिक्षा आयोग के रिपोर्टों एवं नीतियों की अनुशंसाओं के बावजूद हम कक्षाओं को पारंपरिक शिक्षण से मुक्त करके विद्यालयीय परिवेश को सहज सुरम्य समता ममता भरा आनंददायी नहीं बना पाए हैं। गिजुभाई बच्चों के साथ काम करने के कुछ सूत्र प्रदान करते हैं- कहानी, कविता, खेल और भ्रमण।



शिक्षकों को समझना होगा कि बच्चों को पढ़ना-पढ़ाना उनका दायित्व है, जिम्मेदारी और कर्तव्य है। वे तो बस सरकारी दिशानिर्देशों में बँधे पाठ्यपुस्तकें पढ़ा रहे हैं। पाठ्यक्रम पूरा करने के दबाव में हैं और केवल सूचनाएँ सम्प्रेषित कर रहे हैं। बच्चों की कितनी समझ बनी है, कक्षा में ज्ञान अर्जित करने के कितने अवसर बना पायें हैं और अर्जित ज्ञान को वे अपने सामाजिक जीवन और व्यापक संदर्भों से कैसे जोड़ पा रहे हैं? यह जानने-समझने की किसी को न चिंता है और न समय। बच्चों में समझ के स्तर पर बेहतरी हो, ऐसा रुचिकर संवाद करने का समय शिक्षकों के पास नहीं होता क्योंकि गैर शैक्षिक कार्यों में ड्यूटी लगा दी जाती है। कह सकते हैं कि शिक्षकों को आजादी नहीं है। आज बच्चों का शैक्षिक सामाजिक नुकसान भविष्य में समाज और राष्ट्र की एक बड़ी क्षति के रूप में प्रकट होने वाला है, यह हम नहीं समझ पा रहे हैं। गिजुभाई 'दिवास्वप्न' के माध्यम से भारतीय शिक्षा तंत्र के नीति निर्धारकों को एक रास्ता सुझाते दिखाई देते हैं।‌ एक ऐसा रास्ता जिससे गुजर कर हम विद्यार्थियों में जीवन का संचार कर सकते हैं, जहाँ बच्चों का न केवल मधुर स्वर सुनाई दे बल्कि जहाँ अपनी रचनात्मकता भी विभिन्न आयामों के साथ सहज रूप में प्रकट हो।  जहाँ प्राथमिक विद्यालयों की चारदीवारी के अंदर लोक के प्राणों का स्पंदन हो और लोक का राग ध्वनित हो, जहाँ प्रत्येक पल उत्सवधर्मी हो ताकि आनंदित बच्चों में नित नवल सृजन की इच्छा आकांक्षा और सिद्धि का शुभ संकल्प हो।  



गिजुभाई पढ़ने के संस्कृति के पोषक के रूप में हमें दिखाई देते हैं वह विद्यालयों में पुस्तकालयों की स्थापना को बहुत आवश्यक मानते। वे कहते हैं कि छात्रों से पाठ्यपुस्तकें खरीदवाई ही न जाएँ और उन पुस्तकों की कीमत में पढ़ने योग्य अच्छी पुस्तकें खरीद कर एक पुस्तकालय बना दिया जाए। प्रतिवर्ष पाठ्यपुस्तकें खरीदने से बेहतर है कि हम बच्चों से सत्रांत में पुस्तकें विद्यालय में जमा करवा ले और नए सत्र में बच्चों को वितरित कर दें, इससे विभाग पर किताबें खरीदने का भार भी कम पड़ेगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी। अभिभावकों से संवाद हेतु वह एक सभा का आयोजन करते हैं पर 40 अभिभावकों को पत्र द्वारा सूचित करने के बावजूद केवल 7 अभिभावक ही उपस्थित होते हैं। आज भी स्थितियों में बहुत परिवर्तन नहीं आया है, उसका कारण है कि अभिभावक शिक्षा के महत्व को नहीं समझ रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में आने वाले बच्चों में एक बड़ी संख्या पहली पीढ़ी की है। अभिभावक मजदूरी या खेती किसानी से जुड़ा है और इस कारण वह विद्यालय में समय नहीं दे पाता।


  

विद्यालयों की वर्तमान स्थिति की बेहतरी के लिए रचनाधर्मी शिक्षक सदा प्रयत्नशील रहते हैं। उनके रास्ते पर चुनौतियाँ और बाधाएँ आती हैं। मुझे लगता है 'दिवास्वप्न' चुनौतियों से जूझने में सहायक हो सकती है। और तब विद्यालयों का वर्तमान परिदृश्य सकारात्मक, रचनात्मक और बच्चों के लिए आनंदमय हो जाएगा, ऐसा विश्वास है।(लेखक शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश के संस्थापक हैं) प्रमोद दीक्षित मलय



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

.