Jamshedpur (Nagendra) । आदिवासी छात्र एकता केंद्रीय समिति द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर शनिवार को गोपाल मैदान (रीगल मैदान) में एक आदिवासी के मान सम्मान एवं हक अधिकार के लिए संकल्प सभा का आयोजन किया गया। आदिवासी छात्र एकता केंद्रीय समिति सन् 2007 से ही आदिवासी दिवस की महत्व, आदिवासी और आदिवासियत को बनाए रखते हुए आदिवासी दिवस का आयोजन करते आ रहा है। इस वर्ष भी आदिवासी दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा "स्वदेशी समुदायों के आत्म निर्णय के अधिकार" नारा के साथ बिष्टुपुर स्थित रीगल मैदान में जनसभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आदिवासी समाज के लोगों ने दिसोम गुरु शिबू सोरेन जी को श्रद्धांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। वहीं समिति के संयोजक इन्द्र हेमब्रम ने बताया कि 24 अक्टुबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के 50 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह महसूस किया कि 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज अपने मूलभूत जैसी समस्याओं से ग्रसित है, आदिवासी समाज के उक्त समस्याओं का निराकरण हेतु विश्व का ध्यानाकर्षण के लिए वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया आदिवासी बहुल देशों में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है जिसमें भारत भी शामिल है। वक्ताओं द्वारा विश्व आदिवासी दिवस के पावन अंवसर पर अपने विचार रखे गए।
निम्न विन्दुओं पर सभा में सकरात्मक पहल एवं अनुपालन हेतु वक्ताओं ने मजबूती से अपनी बातों को जनसभा में रखा-राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का अचानक झारखण्ड राज्य में लागू होने से लाखों विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का अक्षरसः अनुपालन सुनिश्चित हो। अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के पूर्व हातु मुण्डा, मानकी, माझी बाबा के द्वारा ग्रामसभा से पारित होने के बाद ही भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आरम्भ की जाए। आदिवासी प्रकृति पूजक है, धर्म सरना है, सरना धर्मावलम्बी केन्द्र सरकार से सरना कोड की मांग वर्षों से कर रहे है, क्यों सरना धर्मावलम्बियों की संख्या जैन धर्मावलम्बियों से अधिक है। देश के अन्य राज्यों में भी आदिवासियों की आबादी है, परन्तु अनुसूचित क्षेत्र नहीं है जैसे कि पश्चिम बंगाल। अतः भारत सरकार उन राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों को अनुच्छेद 244 (1) के तहत् भारतीय संविधान के पांचवी अनुसूचि में शामिल करें। मेसा कानून बनाए बिना नगर निगम, नगर परिषद, नगरपालिका का चुनाव पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में असंवैधाकि है। 24 दिसम्बर 1996 में संसद द्वारा पारित पेशा कानून अभी तक राज्य में क्यों और किस लिए लागू नहीं हुआ है, यह कैसे लागू होगा। इस पर आर-पार की लड़ाई हेतु रणनीति। असम में वर्षों से रहे रहे संथाल, हो, मुण्डा, उरांव के साथ-साथ अन्य आदिवासियों को टी ट्राईब्स के नाम से पुकारा जाता है। अतः हम असम में रहने वाले संथाल, हो, मुण्डा, उरांव आदिवासियों को आर्टिकल 342 के तहत् सूचीबद्ध करने की मांग करते हैं। कार्यक्रम के दौरान सी.एन.टी एक्ट, एस.पी.टी एक्ट एवं विलकिन्शन'स रुल के अनुपालन पर चर्चा किया गया। पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी जमीन हथियाने के लिए बनाए गए षड्यंत्रकारी नीति भूमि बैंक को रदद् करते हेतु एक जन आंदोलन की आवश्यकता है। झारखण्ड राज्य के निजी क्षेत्रों में स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन विधेयक 2021 को जल्दी से लागू किया जाय ताकि निजी क्षेत्रों के कारखानों एवं उद्योगों में कुल रिक्ति के 75 प्रतिशत पदों पर स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन हो । बड़े पैमाने पर बोली जाने वाली हो, मुण्डारी, भूमिज एवं कुडूख भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किया जाए।
संविधान के पांचवी अनुसूची के अनुच्छेद 244(1) में वर्णित प्रावधानों को सख्ती से कैसे लागू किए जाय, इस पर चर्चा मुख्य वक्त्ताओं में डॉ० अभय सागर मिंज, समाजशास्त्री, जोसाई मार्डी, TAC सदस्य, संस्थापक सह मुख्य संरक्षक आदिवासी छात्र एकता , संयोजक इन्द्र हेम्ब्रम, हेमेन्द्र हाँसदा, दुर्गाचरण हेम्ब्रम, नवीन मुर्मू, राज बाँकिरा, नन्दलाल सरदार, हरिमोहन टुडु, स्वपन सरदार आदि ने अपने संबोधन से लोगों को लाभान्वित किया । वहीं समापन भाषण के दौरान सबसे पहले इस सभा में पधारे जनता का आदिवासी छात्र एकता केंद्रीय समिति द्वारा आभार प्रकट किया गया जो इस विश्व आदिवासी दिवस के पावन अवसर पर पधार कर इस कार्यक्रम को सफल बनाते हुए आदिवासी आवाज एवं आदिवासी झण्डा को उँचा रखने का कार्य किया है और आदिवासी छात्र एकता को भविष्य में इस तरह का कार्यक्रम जारी रखने के लिए उत्साहित किया है।
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